छायावादोत्तर हिंदी कविता में सौंदर्य बोध | Chhayavadottar Hindi Kavita Mein Saundarya Bodh

Chhayavadottar Hindi Kavita Mein Saundarya Bodh by अर्चना गुप्ता - Archana Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) आचार्य कुन्तक वक्रोक्ति को सौन्दर्य के व्यापक अर्थ में ग्रहण करते हैं । उन्होने वक्रोक्ति को कवि-कौशल द्वारा प्रयुक्त विचित्रता कहा है- “वक्रोक्तिरेव वैदग्धभंगी-भणिति रूच्यते''(१) विचित्रता के लिए “विच्छित्ति' शब्द का प्रयोग किया है । कुन्तक से पूर्व 'भामह' ने अपने “काव्यालंकार' में इसे लोक-व्यवहार से भिन्‍न वक्रोक्ति की संज्ञा दी है, और इसे सम्पूर्ण अलंकारों का मूल माना है । इसके अभाव में काव्य में सौन्दर्यसत्ता आ हौ नही सकती ओर न इसके विना कोई अलंकार हो सकता है- “सेषा सर्वत्र वक्रोकितिरनयार्थो विभाव्यते । यल्नोस्यां कविना कार्यः कोडलंकायोनयाविना ।। '(२) कन्तक ने वक्रोक्ति को मात्र अलंकार न मानकर उसके स्वरूप को ओर विस्तृत बनाया है । उन्होंने 'वैदग्धभंगी भणिति' अर्थात विद्वतापूर्ण चमत्कारयुकत्‌ कथन को बक्रोक्ति ई की संज्ञा प्रदान कौ, इसमे “विदग्ध' शब्द का अर्थ प्रतिभा सम्पन्न कवि का काव्य-कौशल, भंगी का अर्थं चमत्कार' ओर भणिति का अर्थ 'कथन-शैली' है । कून्तक वक्रोक्ति के विश्लेषण मे ओचित्य को वक्रता का जीवन मानते है । अतः उचित कथन वक्रता का प्राण होने से ओचित्य का वक्रोक्ति ना १५५११०१५१५०५१७- ५५ पि) ০ রা এ. এপ ই, रीतिवादी आचार्य वामन ने रीति को काव्य की आत्मा स्वीकार किया है - “रीतिरात्मा काव्यस्य''(३) और 'ब्िशिष्ट पद रचना को रीति कहा है - “विशिष्ट पद रचना रीतिः” (४) यह विशिष्टता गुणो मे है ओर काव्य शोभा को उत्पन्न करने वाले धर्मो को गुण कहा गया - “काव्य शोभायाः कत्तरौ धर्मागुणाः'(५) गुण ओर रीति दोनो ही अन्त मे साध्य नहीं रहते वरन्‌ शोभा के पे ता ५५८५०१११ ८०५१९०६ क साधन बन जते है । वामन ने अलका के कारण काव्य कौ ग्राहकता बतलाई है काव्यं : ग्राह्मलंकारात्‌' (६) किन्तु उन्होने अलंकार को सौन्दर्य के व्यापक अर्थ में माना है - सौन्दर्यमलंड.कारः' । (७) आचार्य वामन ने रीति को अध्ययन प्रसूत न मानकर उसे जन्मजात संस्कार ५ ५५ (०५ माना है। द द द ध्वनि सम्प्रदाय के उन्‍नायक 'ध्वनि' में सौन्दर्य का प्रतिफलन देखते है । ध्वनि में व्यंगार्थ णिति तिनि कौ प्रधानता रहती -है जिसके कारण यह अर्थ का भी अर्थ है, जिसमे थोडे मे बहुत का अथवा ` সানা নি नात) एकता मेँ अनेकता का चमत्कार रहता है । इनके अनुसार क्षण-क्षण में नवीनता धारण करने बाला है ध ` सौन्दर्य व स्मरणीयता का जो लक्षण है वही ध्वनि मे भी दिखाई देता है । केवल हाथ-पैर, 1. क्क्रोक्ति जीवितम्‌ = कूत्तक ई काव्यालंकार : भामह हि এ ও 5 आल्यालकार सुत्त द: वामन মা # -




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