बुन्देलखण्ड प्रक्षेत्र के सेवानिवृत्त प्रायमरी एवं माध्यमिक शिक्षकों की अभिवृत्ति तथा उनकी समस्याओं का अध्ययन | Bundelkhand Prakshetra Ke Sevanivrit Primary Evam Madhyamik Shikshakon Ki Abhivratti tatha Unki Samasyaon Ka Adhyayan
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique, शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
205 MB
कुल पष्ठ :
199
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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के लिये आवश्यक है। प्रशिक्षित शिक्षक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों में मानवीय
गुणों का विकास स्वतः ही करते रहते है। जो उनके संकलित व्यक्तित्व के विकास में
महायक होते हैं।
मानव जाति की “व्यक्तित्व” के बारे में जानकारी प्राप्त करने की
जिज्ञासा प्राचीन समय से ही रही है। प्राचीन गीतों में, कहानियों में, प्रथाओं, विश्वासों और
गलत धारणाओं, आदि में व्यक्तित्व के बारे में भ्रमात्मक धारणायें फैलायी जाती रहीं, जो
विज्ञान के द्वारा प्रदत्त कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं हैं। मानवीय विकास के साथ-साथ
व्यक्तित्व के स्वरूप के विभिन्न मत विकसित होते रहें हैं, जिनमें एक व्यक्ति की
प्रनुकियाओं के द्वारा उत्पन्न व्यवहारों के एकीकरण किसी उद्दीपक के प्रति स्थापित
किया गया है। वर्तमान युग विज्ञान का युग है। संसार का प्रत्येक कण विज्ञान के प्रभाव
से प्लावित हो रहा है। मानवीय जीवन की आवश्यकतायें भोजन, कपड़ा और मकान के
अलावा व्यक्तित्व का अपना अलग स्थान है|
शिक्षक व्यक्तित्व के संबंध में एक कहावत शिक्षक जन्म लेता
हे, बनाया नहीं जा सकता हे |“ प्रचलित है | वेज्ञानिक प्रशिक्षण ने इस कहावत की
उपादेयता को गलत सिद्व कर दिया है। महान मनोवैज्ञानिक “वाटसन” का विश्वास
प्रशिक्षण के द्वारा मन वाहा व्यक्तित्व विकसित करने मे था। वर्तमान शिक्षकों की
असफलता का कारण सही चयन का न होना है। विधालय एक तीर्थस्थान है जिसमें
शिक्षक एक पुजारी है। पुजारी की सफलता उसके अपरिग्रहों एवं मनोभावों से होती
है [वह अर्न्तमुखी होता जाता है क्योंकि उसको उन समस्याओं का हल खोजना होता है
जो सामाजिक होती है। इसी विचार को शोधकर्ता ने अपने मस्तिष्क में स्थापित करकं
सेवा निवृत्त शिक्षकों को अपने अध्ययन हेतु चुना है ताकि उनकी समस्याओं से मुक्ति
मिल सके |
2- समस्या का आभास :-
भारत एक समाजवादी, प्रजातत्रिक गणराज्य है।
इसका उद्देश्य अपने नागरिकों शिक्षा के द्वारा मानवीय गुणों से युक्त करना है। यह
कार्य, दक्ष शिक्षकों के द्वारा ही संपन्न हो सकता है, भले ही वे कियारत शिक्षक हौ या
अवकाश प्राप्त शिक्षक । समाज एवं राष्ट्र की संपन्नता मं दोनों ही सह भागी होते हैं|
अतः शोघकर्ता ने अवकाश प्राप्त शिक्षकों की अभिवृत्ति तथा उनका समस्याओं को
जानने के लिये अपना मन मनाया
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