संस्कृत साहित्य में इन्दिरागाँधी पर आधृत शातककव्यों का साहित्यिकअध्ययन | Sanskrit Sahitya Mein Indira Gandhi Par Aadhrat Shatakkavyon

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Sanskrit Sahitya Mein Indira Gandhi Par Aadhrat Shatakkavyon by ज़ेबा खान - Zeba Khan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आचार्य चरित प्रधानप्रकृति ` र ऊ हल काव्यकार अपनी सीन्दर्यानुभूति को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। सौन्दर्य रूप और विचार दोनों में पाया जाता है, उन विचारों की अभिव्यक्ति कवि को बेचैन कर देती है। श्ृंगारी शतकों का विकास इसी का परिणाम है। इन शतकों में श्ृंगार को ही प्रधान रस माना गया है तथा काम के विभिन्न रूपों मदन, मन्मथ मार, काम, कन्दपं, पंचशर आदि के मानव समुदाय मे व्याप्त प्रभाव का चित्रण किया गया। कवियों ने नायिकाओं के विभिन्न अव्यवों, विलास क्रीडां मनोमुग्धकारी रूपों के चित्रण मे ही अपनी लेखनी को सार्थक ` बनाया । “सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधान? तथा, “सर्वस्य गात्रस्य शिरः प्रधानम्‌” उक्तियों को कवियों ने अपनी सुक्ष्म उपमां तथा अलौकिक भावों से सार्थक सिद्ध कर ` दिया । श्ृंगारी शतकों म कवियों ने रमणी के नयन, मुख, नासिका, केश, कटाक्ष, वक्षोज, कटि, रोमावलि आदि अवयवो को दही विषय बनाकर काव्य सर्जना की । इतना अवश्य है कि हमारे इन कवियों का ज्ञान अलौकिक ओर इन्होंने. अपनी अन्तः सूझ से विषय-वस्तु को जिस कलेवर में संजोया वह संसार के किसी साहित्य में दुर्लभ हे। कवि नेमर्यादित श्रृंगार का ही चित्रण किया है। जहा करटं भाव-विभोर हौकर वृह लौकिक धरातल पर उतरने लगता है 2 अश्लीलता भी ला देता है, पर उसमें भी एक अपूर्वं आनन्द तथा सौन्दर्य का... समन्वित रूप पाया जाता है। द संस्कृत शतककाव्यों के माध्यम से भारतीय मनीषियों ने ऐसी उपदेशात्मक तथा नीतिपरक बातों की शिक्षा दी है जो किसी अन्य वाड्‌.मय में दुर्लभ हे। इन नीति सम्बन्धी शतको का समाज पर अत्यधिक प्रभाव पडा । इन शतकं म कवि ने प्रत्यक्ष तथा परोक्ष दोनों रूपों मे शिक्षाये प्रदान की हे । इन शतको पर यदि ` है £ हम ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करें तो स्पष्ट हो जाता है। कि समाज में রে प्रत्येक युग मे यथार्थ दिशा प्रदान कृरने का कार्य भारतीय मनीषी हीः अपने काव्य ` के माध्यम से करते रहे। नीति सम्बन्धी शतको मेँ उनका साहित्यिक एवं ` सांस्कृतिक माहात्मय, लोकप्रचलित, धर्मशास्त्र, व्यंग्य, सामाजिक, आत्मचरित, ` न्धी शतको का परिगणन किया गया है। ति-क्छ्तु, राजचरित, खन्द अलंकार, काव्य माहात्म्य `




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