ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह | Etihasik Jain Kavya Sangrah

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Etihasik Jain Kavya Sangrah by शंकरदान जी नाहटा -Shankardan Ji Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एातहासक जन-+काव्य' सग्रह -की- प्रस्तावनां जेन-धमं भारतवर्षका एक प्राचीनतम धमं ह । इस धमक अनु- यायियोने देशके ज्ञान-विज्ञान, समाज, कला-कोरा आदि वैरिष्य्य- के विकासमें बडा भाग छिया ह ! मनुष्यमात्र) नहीं-नहीं प्राणीमात्र में परमात्मत्वकी योग्यता रखनेवाला जीव विद्यमान है ओर प्रत्येक प्राणी, गिरते-उठते उसी परमात्मत्वकी ओर अग्रसर हो : रहा है | इस उदार सिद्धान्तपर इस घमका. विश्वप्रेम ओर विश्व- बन्धुत्व स्थिर है। भिन्न-भिन्न धर्मों के विरोधी मतों ओर सिद्धांवों- के बीच यह धर्म अपने स्याद्वाद नयके द्वारा. सामव्जस्य उपस्थित कर देता है । यह भोतिक ओर आध्यात्मिक उन्‍नतिमें सब जीवोंके समान अधिकारका पक्षपाती- है तथा सांसारिक छामोंके लिये कलह ओर विद्धेषको उसने पारखोकिकं सुखकी श्रेष्ठता द्वारा मिटानेका प्रयत्न किया है । न-धमकी यह विशेषता केवल सिद्धान्तोंमें ही सीमित नहीं रही । जन आचार्योंने उच्च-नीच, जाति-पांतका भेद न करके अपना उदार उपदेश सब मनुष्योंकों सुनाया और अहिंसा परमो




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