वीणा ग्रंथि | Veena Granthi

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Veena Granthi by श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वीणा ( ३) बढ़ा और भी तो अंतर ! जिनको तूने सुखद सुरभि दी, লা! जिनको छबि दी सुंदर, में उनके ढिंग गई व्यग्न हो तुझे दूढने को सत्वर ! मधुबाला बन मेने उनके गाए गीत, गज मृदतर, पर में अपने साथ तुभे भी भूल गईं मोहित होकर ! (१९१८) ५




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