सूर सारावली : एक अप्रामाणिक रचना | Soor Sarawali: Ek Apramanik Rachana

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Soor Sarawali: Ek Apramanik Rachana by प्रेमनारायण टंडन -Premnarayan Tandon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २० ) 'साराबनो? कवि ने दी है, परंतु यह घोषणा आदि या अंत में नहीं हे क्रि ग्रंथ के रचयिता सूरदास ही हैं। “अथ श्री सूरदास जी रचित सूरसागर सारावली'--.इस वाक्यांश में 'सूरसागर! और सारावली? के बीच मे यदि “की? समफी जाय तो (रचितः शब्द 'सूरसागर” का ही विशेषण रह जाता है । लखनऊ की प्रति मे “तथा सारावली' अलग देने से उक्त वाक्य- विन्यास उपयुक्त भी जान पड़ता है और वैसी स्थिति मे कटा जायगा कि सूर-काव्य के 'सारावली? नामक 'सूचीपत्र को किसी अन्य व्यक्ति ने तैयार कर दिया है, सूरदास ने नहीं। परंतु 'सारावली” मे 'सूरदास' को ही कर्त्ता सूचत करनेवाले कुछ वाक्य मिलते है ! स्थूल कूप से, इनको दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है--प्रथम वर्ग में सूर, सूरज या সি सूरजु और सूरदास छापो वाले छंद आते है और हिताय में स्व-जीवन- संबंधी अथवा आत्मचारित्रिक उल्लेख। 'साराबल्ली” के जिन छदो में उक्त छापे! प्रयुक्त है या जान पड़ती है वे इस प्रकार ई-- १. तिनके नाम कहत कवि सूरज निगुन सबके ईस)। २, अट्ठाईंस तत्व यह कहियत सो कवि सूरज লাদও। ३, सातो दीप कहे सुक मुनि ने सोइ कहत श्रव सुर्‌ *। ४. कछु संक्षेप सूर अब बरनत लघुमति दुर्बंल बाल । ५. वाल्मीकि मुनि कही कृपा करि कछु इक सूर আ বাইঘ | १, सूरज छाप वाले दो उदाहरण डा० ब्रजेश्वर वर्मा ने 'सूरदास!, ६० १०४ में उद्धृत किये है-- सूरज कोटि प्रकास अंग मे कटि मेखला बिराजे--छुंद ३३४ | ৮ ৮ >€ प्राए बरह्म सभा मे बामन सुरज तेज बिराजें--छुंद ३३६ |। उक्त पंक्तियों में 'सूरज! शब्द अपने साधारण प्सू अथं मे प्रयुक्त ই। आश्चर्य है, डा० वर्मा ने उसे कवि की छाप कैसे मान लिया | -लेलक | सारावली, छंद ७ । वही छंद १० | वही, छुंद ३२४ | बही, छुंद १४७ | ६, बही, छुंद १६२। आग ३0




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