राजयोग | RajYog

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : राजयोग  - RajYog

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ अमरनाथ झा - Dr. Amarnath Jha

Add Infomation AboutDr. Amarnath Jha

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पहला अंक ९ शत्रूसूदन-- लेकिन में श्रापके गुज़ारे के लिए तो....-. रघुबंश--| पैर पटककर ) सा धान . शुज़ारे का. नाम फिर नहीं । [ तेजी से सिरोही खींचकर ] यदद . यह... यदद.. [ सिर हिलाकर ) मेरा गुजरा दोसा...इईससे । मरा गुजारा इससे होगा शतुसूदन ! [ वद्दीं धरती पर वेठकर दॉफने लगता है। ) शत्रसूदन-्गु रघुबंश की शोर «ोध से देखते हुए ] गजराज, देख रहे हो न?! इनका दिमाग कितना गया है । मैं दब इससे अधिक सहन नहीं कर सकता । ता के बल खेत खाना मेरे चरदाश्त के बाहर हो रहा है । ब्रलते क्यों नहीं गजराज १ [ गजराज सिर नीचे कर चुपचाप खड़ा रहता है । 3 रघुबंश--क्या करोगे ? मुझे उलाल करोगे £ हाँ कैद करोगे...यही न.. यही...न...बस और क्या १ लेकिन जो वात सच है - वह...बह प्रिटा नहीं सभोन । ठाकुर बिहारी सिंद की लड़की से नरेन्द्र को शादी पक्की है खुकी थी । दोसों कालेज में सुना था साथ ही पढ़ते शायद ._.बात्लीत, मी प्रेम भी ..। लेकिन तुम राजा थे...तुग्हारे हाथ में, तुम्दारी जीम में ताकत थी...तुमने पहली रानी के जीने ही ठाकुर साहब की लड़की से शादी कर ली। नरेन्द्र मारे शर्म के, मारे रंज के कहीं चला गया । तुम्हें उसका संदेह है । मेरी गद्दी इसलिए तुम उसे नहीं दे सकते | राजपूत श्रौर सब हो सकता है, लेकिन नमकहराम और विश्वासघाती । [ हॉँफते हुए ] खैर . आ्रच्छा.... अल्छा [ सिरोही म्यान में ] श्रच्छा तो जा रहा हू रतनपुर नहीं । दुनिया बहुत बड़ी है । साढ़े तीन हाथ घरती बहुत मिलेगी । झपनो रियासत जाकर सैँगलों या ' कौन जीनता है, शायद रियासत के हक़ के बारे में भी पुश्तैनी चांत न चलती हो। भगवान्‌ तुम्हारा कल्याण करे |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now