स्वातत्र्य -सेतु | Swatatrya-Setu

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Swatatrya-Setu by जेम्स ए. मिचनर-Jemes A. Michenerविद्याभूषण 'श्रीरश्मि '-Vidyabhushan 'Shrirashmi'

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जेम्स ए. मिचनर-Jemes A. Michener

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विद्याभूषण 'श्रीरश्मि '-Vidyabhushan 'Shrirashmi'

विद्याभूषण ’श्रीरश्मि’ हिन्दी अकादमी द्वारा पुरस्कृत लेखक थे। यह पुरस्कार उन्हें स्वयं उनके जीवन पर आधारित उपन्यास, ’दिव्यधाम’, के लिए 1987 में मिला था। विद्याभूषण ’श्रीरश्मि’ (11 दिसम्बर 1930 - 25 अगस्त 2016) का वास्तविक नाम विद्याभूषण वर्मा था।

वे मात्र 16 वर्ष की आय में दिल्ली के ’दैनिक विश्वमित्र’ समाचारपत्र के सम्पादकीय विभाग में नौकरी करने लगे। वे रात में काम करते और दिन में पढ़ते। अल्प वेतन से फ़ीस के पैसे बचा-बचा कर उन्होंने विशारद, इंटरमीडियेट, साहित्यरत्न, बी. ए. तथा एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

’श्रीरश्मि’ ने ’दैनिक विश्वमित्र’ के अतिरिक्त ’दैनिक राष्ट्रवाणी’, ’दैनिक नवीन भारत’, साप

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. इसी समय बुडपरसट के हस युद्ध में, बल्कि आधुनिक विश्व के इतिहास में, एक चमत्कारपूर्ण घटना घठी। यह एक ऐसी घटना थी, जिसकी कल्पना कालेज-छात्र तथा बुद्धिवादी लोग कभी सपने में भी नहीं कर सकते थे। नगर के दक्षिणी भाग से आनेवाले ट्रकों का तौता-सा वध गया भौर उनसे मजदूर उतरने लगे। वे लोग अपनी साधारण काम करने की पोशाक में ही थे। उन मजदूरों के आने से वहाँ उपस्थित जनता में जो आश्चर्य और आनन्द की भावना फैली, उसे समझ सकना किसी विदेशी के लिए कठिन था। वे मजदूर सीपेल् के थे ओर उनके भने से कम्यूनिञ्म के बनावर्यीपन का पदाफाश हो गया था। ^^ वे लोग सीपेल से आये हैं ?--एक महिला बोली । ४ साथ में शख्राख्न ओर गोले-बारूद मी लाये हैं ”--.एक छात्र बोल उठा। . “जरा उन्हें देखो तो ?7--किसी और ने क वास्तव में, उनका आगमन एक चमत्कार ही था; क्योंकि वे कम्यूनिज्म के गढ़, एक निकय्वर्ती द्वीप, सीपेल से आये थे, और वह भी कम्यूनिज्म के विरुद्ध मोर्चा लेने ! वे लोग उन कारखानों के मजदूर थे, जिनकी स्थापना कम्यूनिस्टों ने सबसे पहले की थी और जहाँ पिछले ११ वर्षों से किसी भी पूंजीपति का पदापंण नहीं हुआ था। वे कम्यूनिज्म के सुहृद केन्द्र से आये थें। एक समय था, जव वे लोग-“ सीपेल के कम्यूनिस्ट › नाम से पुकारे जते ये ओर आज वे कम्यूनिज्म से मोचों लेने के लिए वहाँ आ पहुंचे थे। पहुँचते ही वे लोग जल्दी-जल्दी टकों से उतर कर उपयुक्त स्थानों पर मशीनगनें लगाने ' लगे। सीपेल के वे इृढ़संकल्प मजदूर न आते, तो वस्तुतः कुदं ठोस काम हो सकने की आशा न थी। परंतु उनके आ जाने से लोगों में यह विश्वास पैदा हो गया था कि अब तो स्वतंत्रता भी उनकी पहुँच के भीतर ही है। आते ही उन्होंने जो पहला काम किया, उससे स्पष्ट था कि उस क्रान्ति में उनका कितना महत्त्वपूर्ण सहयोग होगा। उन्होंने एक “'टूक” के पिछले हिस्से में एक बड़ी-सी मशीनगन लगायी और इमारत की छुत पर निशाना लगा कर बड़े इतमीनान से पूर्वी छोर पर लगे प्रकाश-यंत्र को उड़ा दिया। उनका वह बार एक प्रकार का संकेत था, जो कह रहा था कि अन्न सम्पूर्ण बुढापेस्ट से कम्यूनिज्म के प्रखर प्रकाश का लोप होना आरम्म हो गया है। अब सीपेल के के दृठतती स्वातंत्र्य-सैनिक इमारत के पश्चिमी छोर पर लगे प्रकाश-यंत्र को गिराने के लिए निशाना ठीक करने लगे। तभी जोसेफ टोथः 1६




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