उभय प्रबोधक रामायण | Ubhay Prabodhak Ramayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) सुचि विचार को दड नियम-यम-संयम वाना 1 तप चोखी तरवारि भरोसा चमं प्राना ॥1 श्रद्धा अरु उत्साह पुनि, हिम्मति अभय तुरंग है) कहं बनादास स्यदन सृङ्कत, होन योग नहि भग ह 11 हरदम सुमिरन नाम सारथी परम सयाना 1 मत्री पूनि सतस्य मेन वहु वेद विधाना सर्वभात सतोष सेत त्ताको दिद करिए \ परमयोध रिपु-वेधु छत अविचल सिर धरिए ॥1 प्रवल अनल वैवत्य कौ, लकः फूकि करिए कटा। कह ভ্রনাহাম্ नैना सजग बबहुँ न पण पीछे हटा ॥* परिणाप--सहुरस्वरुप, मोक्ष यदा अवध (घाम) फो प्राप्ति काटि रिपून को सीस सिया-सातिहि उर लावै \ अविचल वृत्ति विमान तहां सादर वैटवै॥ मन मुनिको वैरि सुखी भर्मं महिभार उतारे । नाना सकट सहै देव आतमहि उवार ॥ सहज सरूप सो अवध है तहां परलटि कारज सरै । नहि बनादास जन्मै मरै अविचल राज सदा करै ।*3 राममर्ति-साधना फा भाद्ण-- जो ভাই অন্ত ভাত उपासक राम सो सच्चा । नतर वेष करि तिए पेट के कारन कच्चा ॥। करमं वचन मन चलै यही मग में मरि जावै तो भौ नहि सदेह অন मे हरपुर पावै। रामकृपा सिधि होइ जो, जोवनमुक्त कहाइहै। कह वनादास यहि तन सुखी बहुरि न यहि जग जाइहै ॥४ राम के ऐतिहासिक चरित की आध्यात्मिक व्याख्या के सूत्र बनादास को দন गुर तुलसी को इृतियी में मिले थे । सीताहरण से लेकर रावण बध और सोता को पुनः प्राप्ति का वृत्त इस दृष्टि से विशेष महत्व वा रहा है॥ अज्ञान के कारण मोहासक्त जीव की नित्यस्वभावयूताशक्ति शांति का हरण होता है | वैराग्य वृत्ति के माध्यम से उसका संधान भौर पुनः प्राप्ति हौ जौव अथवा साधक का परम पुरुपार्थ है । रावण के हीरा अपइता सोता को हनुमान के माध्यम से खोज बोर रावण का १, वही, पृ० १७ २. उमभ्य प्रवोधक रामायण पृ० १८ (५६) ३. यही, पृ० १८ (५७) ४. 3० प्र० रामायण, पृ १८ (५८)




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