श्री भागवत दर्शन खंड 75 | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 75 ]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ £) गया मौन ब्त की ही दशा में गया | मौनी, फनाहारो साधु होने के नाते सभी भ्रादर की दृष्टि से देखते । कंसे भी सही उनके भी तो हृदय है, वे भी तो भारतीय हैं, उन्हें भी तो घ॒र्म के प्रति- ग्रास्‍्था है। वे यह भी जानते हैं, कि ये किसी चोरों डकंती के अपराघ में जेल नहीं भाये। देश भक्ति के लिये धर्म की रक्षा के लिये भागे हैं, भ्रतः इन्हें जितनी ही सुविधायें हम दे सकें उतना ही पुण्य होगा । बाहर के लोग तौ सममत ह, ब्रह्यवारी जी जेल में रहकर बड़ी विपत्तियाँ सह रहे हैं, कष्ट पा रहे हैं, किन्तु यथार्थ बात ऐसी है, कि जितनी सुविधा निश्चिन्ता मुझे जेलों में रहती है उतनी बाहर नहीं । जेन में एक तो दशनार्थी व्यर्थ तंग करने वाले नहीं झा सकते । रह्नै फो एकान्त स्थान मिलता है । सेवा करने को मनमाने सेवक नित्य स्वास्थ्य की परीक्षा के लिये चिकित्सक जिले का सबसे श्रेष्ठ चिकित्सक (सिविल सर्जन) नित्य श्राता है। इसी प्रकार भथुरा जैल में भी मुझे सव सुविधायें थी । गोपाष्टमी से अवशन तो जैल में भाते ही भारम्भ हो गया था। अतः भोजन कातो प्रश्न ही नहीं । यमुना जल रामजी तथा द्रे बन्धु निस्य जेल के फाटक पर पहुँचा जाते थे । पूजा करने को तुलसी फून जैल में पर्याप्त मिलते थे | सेवा करने को सेवक मिले थे | मिवास स्थान को लीप पोतकर स्वच्छ सुन्दर बना लिया था। दिन में कोई न कोई बड़ा छोटा नेता, भ्राश्नस का झादमी, केर्द्रीय सरकार या स्थानीय भ्रधिकारियों को अनु मभि से मिल ही जाते थे। झारंभ में तो मिलने पर कड़ा प्रतिबन्ध था। पीछे ढोला पड़ गया। समाचार पत्र भी मिल जाते थे। बाहर क्या हो रहा है, इसका कुछ भाभास हो मिलता था । मे प्राततः उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा पर बठ जाता




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