राष्ट्रीयता और समाजवाद | Rashtriyata Aur Samajwad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.74 MB
कुल पष्ठ :
490
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य नरेन्द्र देव जी - Aacharya Narendra Dev Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अध्याय भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास बहुत प्राचीनकालसे भारतवर्पसे विदेशोसे व्यापार हुभ्रा करता था । यह व्यापार स्थल-मार्ग झ्रौर जल-मार्ग ढोनोसे होता था । इन मार्गोपर एकाधिकार प्राप्त करनेके लिए विविध राप्ट्रोभे समय-समयपर संघर्प हुआ करता था । जब इस्लामका उदय हुग्ा और श्ररब फारस मिख्र और मध्य एशियाके विविध देशोसे इस्लामका प्रसार हुभ्रा तब धीरे-धीरे इन मार्गोपर मुसलमानोका श्रधिकार हो गया श्रौर भारतका व्यापार अरब-निवासियोके हाथमे चला गया । म्रफ़ीकाके पूर्वी किनारेसे लेकर चीन-समृद्रतक समुद्र-तटपर श्ररव व्यापारियोकी कोठियाँ स्थापित हो गयी । यूरोपमे भारतका जो माल जाता था वह इटलीके दो नगर--जिनोश्रा श्रौर वेनिससे जाता था । ये नगर भारतीय व्यापारसे मालामाल हो गये । वे भारतका माल कुस्तुन्तुनियाकी मण्डीमे खरीदते थे । इन नगरोकी धन-समृद्धिको देखकर यूरोपके श्रन्य राष्ट्रोको भारतीय व्यापारसे लाभ उठानेकी प्रवल इच्छा उत्पन्न हुई पर व्यापारके मार्गोपर मुसलमान राष्ट्रीका झधिकार होनेके कारण वे श्रपनी इस इच्छाकी पूर्तिमे सफल न हो सके । बहुत प्राचीवकालसे यूरोपके लोगोका श्रनुमान था कि श्रफ़ीका होकर भारतवर्षतक समुद्र-दवारा पहुँचनेका कोई-न-कोई मार्ग श्रवश्य है । चौदहवी शताब्दीमे यूरोपमे एक नये युगका प्रारम्भ हुआ । नये-नयें भौगोलिक प्रदेशोकी खोज श्रारम्भ हुई । कोलम्बसने सन् १४९२ ईसवीसे श्रमेरिकाका पता लगाया श्रौर यह प्रमाणित कर दिया कि झ्रटलाण्टिकके उस पार भी भूमि है । पुरवंगालकी ग्रोरसे बहुत दिनोसे भारतवर्षके श्रानेके मार्गका पता लगाया जा रहा था । श्रन्तमे अ्रनेक वर्षोकि प्रयासके श्रनन्तर सन् १४९८ ई० मे वास्को- डिगामा शुभाशा अ्न्तरीपको पार कर झ्रफ्रीकाके पूर्वी किनारेपर श्राया श्रौर वहाँसे एक गुजराती नियामकको लेकर मालावारमे कालीकट पहुँचा । पुर्तेगालवासियोनें धीरे-धीरे पूर्वीय व्यापारको भ्ररबके व्यापारियोसे छीन लिया । इस व्यापारसे पुर्तगालकी बहुत श्री-वृद्धि हुई । देखा-देखी डच भ्रग्रेज और फ्रासीसियोने भी भारतसे व्यापार करना शुरू किया । इन विदेशी व्यापारियोमे भारतके लिए श्रापसमे प्रतिद्वन्द्विता चलती थी श्रौर इनमेसे हर एकका यह इरादा था कि दूसरोको हटाकर झ्पना भ्रक्षुण्ण अधिकार स्थापित करे । व्यापारकी रक्षा तथा वृद्धिकि लिए इनको यह झ्रावश्यक प्रतीत हुप्ा कि श्रपनी राजनीतिक सत्ता कायम करे । यह सघप बहुत दिनोतक चलता रहा श्ौर झग्रेजोनें झपने प्रतिद्वन्दियोपर् विजय प्राप्त की श्र सन् १७६३ के वादसे उनका कोई प्रबल प्रतिद्वन्द्वी नही रह गया । इस वीचमे भ्रंग्रेजोंने कुछ प्रदेश भी हस्तगत कर लिये थे श्रौर वज्ाल विहार उड़ीसा श्ौर कर्नाटकमे जो नवाव राज्य करते थे वे श्रग्रेजोके
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