क्या करें खंड - २ | Kya Karen Khand - 2

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Kya Karen Khand  - 2  by टॉलस्टॉय -tolstoyश्री क्षेमानंद राहत - shree Kshemanand Rahat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रा त मार्च महीने में रात को कुछ देर से में घर जा रहा था । गली में घुसने पर दूर के एक खेत में बरफ के ऊपर काली-काली परछाइयाँ-सी मुझे दिखाई थीं। मेरा ध्यान उधर न जाता, यदि गली के किनारे पर खड़े हुए सिपाही ने उन परछाइयों की ओर देखते हुए चिल्ला कर न कहा होता । “वासिली ! तुम आते क्यों नहीं ९? एक आवाज़ ने जबाब दिया, “यह चलती ही नहीं” । और इसके बाद परछाइयों सिपाही की ओर आती हुई दिखाई दीं ! मैं ठहर गया और सिपाही से पूछा-- “क्या मामला है ?” १४




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