ग्रामीय अर्थशास्त्र | Graamiiy Arthashastra

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Graamiiy Arthashastra  by श्रीयुत ब्रजगोपाल भटनागर - shreeyut brajgopal bhatnaagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( च ) हमारे किसान भी विदेशियों की तरह ऊँचे दर्ज के गन्ने की खेती करने लगें तो हमारी करोड़ों की लक्ष्मी--जो शक्कर के खरीदने में बाहर जाती है--अपने ही देश में रह जावे । यदि शक्कर बनाने का व्यवसाय उन्नति कर जावे, तो जो लाभ अन्य देश वाले उठाते हैं उसे अपने ही देश वाले उठावें । सैकड़ों में से यह केवल दो ही उदाहरण हैं जिनसे यही सिद्ध होता है कि भारत के अन्य उद्योग-धंधों की उन्नति अधिकतर भारत की खेती-बारी की द्वी उन्नति करने से हो सकती है । किन्तु इसका यह्‌ मतलब नदीं है कि हमें समस्त उद्योग-धंधों की धोर से लापरवाह्‌ हो जाना चाहिए । हमारे कहने का मतलब यही है कि जब तक भारत की खेती -बारी की उन्नति नहीं की जावेगी तवर तक वह्‌ अन्य उद्योग धंधों में आगे नहीं बढ़ सकता । इस छोटी सी पुस्तक का मुख्य उद्देश्य सवेसाधारण का ध्यान भारत के इस सब से महत्वपूण उद्योग-धंधे की ओर आकषित करना है । अन्त में यह लिखना परम आवश्यक है कि इस पुस्तक को प्रका- शित करने मे मुभे अपने प्रिय मित्र श्री धीरेन्द्र वमो से विशेष सहायता मिली है। इस के बिना इस पुस्तक का वतेमान हिंदी रूप कदाचित्‌ ओर भी अधिक असंतोषजनक होता । मेरे साथ पुस्तक के प्रफ देखने तथा छपाई की त्रुटियों का दूर करने में उनसे मुके जो अमूल्य सहायता मिली है उसके लिए में अपने प्रिय मित्र का अत्यन्त कृतंज्ञ हूँ । कामस डिपाटमेंट, | र विश्वविद्यालय, प्रयाग । ब्रज गोपाल जनरनागर | ११५-१२-१९३ २




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