जैन दर्शन औए विज्ञान | Jain Darshan Aur Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
360
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर्शन और विज्ञान ই
ই । হীন অন্নযাল-হাকি (10150070581 2০৮৩) पर आधारित होता है,
जबकि विज्ञान बौद्धिक शक्ति पर | दर्शन 'तके को कसौटी मानकर चलता है,
जबकि विज्ञान तक के साथ प्रयोग को भी । विज्ञान और दर्शन की इस
भिन्नता के होते हुए भी, कभी-कभी ये एक-दूसरे के बहुत निकट জা জান
है--यहां तक कि एक दूसरे मे धुल-मिल जाते है। इसीलिए सुप्रसिद्ध ब्रिटिश
वैज्ञानिक सर जेम्स जीन्स (§7 72765 16805} अपनी एक पुस्तक में
लिखते है! : “भौतिक विज्ञान और হান की सीमा-रेखा, एक प्रकार से
निर्थंक हो चुकी थी; पर सैद्धान्तिक भौतिक-विज्ञान के निकटभूत मे होने
वाले विकास के कारण अब वही सीमारेखा महत्त्वपूर्ण और आकर्षक बन गई
है । दर्शन और विज्ञान के इस सन्निकर्ष का कारण यह है कि इनका उद्गम-
स्थान एक ही है ।” कभी-कभी वैज्ञानिक सिद्धांतों का आविष्कार वैज्ञानिक के
अन्तर्ञान से स्फ्रित होता है | तब वैज्ञानिक भी दाशंनिक! बन जाता है
-- ऐसी स्थितियों गे दर्शन और विज्ञान का सुभग मिलन हो जाता है । विज्ञान
के इतिहास में ऐसे उदाहरणों की अल्पता नहीं है, जहां वैज्ञानिक सिद्धांतों
का वृक्ष दर्शन-बीज से जन्म लेता हो । दर्शन के सुख्यात इतिहासकार बिल
डूरण्ट (५४1 फणा) ने सही निखा दै ` “प्रत्येक विज्ञान का प्रारम्भ
दर्शन से होता है और अन्त कला मे; वह 'उपकल्पना' से जन्म लेता है भौर.
'सिद्धात' के रूप में परिणित हो जाता है । दर्शन अज्ञान का उपकह्पित प्रति-
पादन है (जैसे--तत्त्वद्शन मे), अथवा अपूर्णतया ज्ञात का (जंसे-नीति-
दर्शन ओर राजनीति-दर्शन मे) । दर्शन सत्य के घेरे में प्रथम 'दरार! है।
विज्ञान एक सीमित भूमि है; उसकी पृष्ठभूमि में वह प्रदेश है, जहां ज्ञान और
कला द्वारा सृष्टि की रचना होती है । किन्तु दर्शन जनक की तरह सदा ही
व्यथित-सा दिखाई देता है ! वह व्यधित इसलिए है कि बिजय का श्रेय सदा
बह अपने संतानों--विज्ञानों को देकर, स्वय अज्ञात और अविहरित प्रदेश में
नई खोज के लिए मटकता रहता है।” `
कुछ विचारक विज्ञान और दर्शन की तुलना करते समय विज्ञान को
“दर्शन! से अधिक पूर्ण बताते है। किन्तु यह अभिप्राय सत्य नहीं लगता । यह
निःसदेह कहा जा सकता है कि दर्शन का स्थान विज्ञान से नीचा नहीं है ।
बल्कि दर्शन विज्ञान से अधिक साहसिक है । जैसे कि विल डूरण्ट ने एक स्थान
में लिखा है :' “प्रायः ऐसा प्रतीत होता है कि विज्ञान की जीत होती है और
दर्शन की हार । किन्तु इसका कारण यही है कि दर्शन उन समस्याओं को
१. फिजिक्स एण्ड फिलोसफी के भ्रिफेस से ।
হ. হী स्टोरी ऑफ फिलोसोफी, पृ० २ ।
है. वही, पृ० २।
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