जैन दर्शन औए विज्ञान | Jain Darshan Aur Vigyan

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Jain Darshan Aur Vigyan by मुनि महेन्द्र कुमार - Muni Mahendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर्शन और विज्ञान ই ই । হীন অন্নযাল-হাকি (10150070581 2০৮৩) पर आधारित होता है, जबकि विज्ञान बौद्धिक शक्ति पर | दर्शन 'तके को कसौटी मानकर चलता है, जबकि विज्ञान तक के साथ प्रयोग को भी । विज्ञान और दर्शन की इस भिन्नता के होते हुए भी, कभी-कभी ये एक-दूसरे के बहुत निकट জা জান है--यहां तक कि एक दूसरे मे धुल-मिल जाते है। इसीलिए सुप्रसिद्ध ब्रिटिश वैज्ञानिक सर जेम्स जीन्स (§7 72765 16805} अपनी एक पुस्तक में लिखते है! : “भौतिक विज्ञान और হান की सीमा-रेखा, एक प्रकार से निर्थंक हो चुकी थी; पर सैद्धान्तिक भौतिक-विज्ञान के निकटभूत मे होने वाले विकास के कारण अब वही सीमारेखा महत्त्वपूर्ण और आकर्षक बन गई है । दर्शन और विज्ञान के इस सन्निकर्ष का कारण यह है कि इनका उद्गम- स्थान एक ही है ।” कभी-कभी वैज्ञानिक सिद्धांतों का आविष्कार वैज्ञानिक के अन्तर्ञान से स्फ्रित होता है | तब वैज्ञानिक भी दाशंनिक! बन जाता है -- ऐसी स्थितियों गे दर्शन और विज्ञान का सुभग मिलन हो जाता है । विज्ञान के इतिहास में ऐसे उदाहरणों की अल्पता नहीं है, जहां वैज्ञानिक सिद्धांतों का वृक्ष दर्शन-बीज से जन्म लेता हो । दर्शन के सुख्यात इतिहासकार बिल डूरण्ट (५४1 फणा) ने सही निखा दै ` “प्रत्येक विज्ञान का प्रारम्भ दर्शन से होता है और अन्त कला मे; वह 'उपकल्पना' से जन्म लेता है भौर. 'सिद्धात' के रूप में परिणित हो जाता है । दर्शन अज्ञान का उपकह्पित प्रति- पादन है (जैसे--तत्त्वद्शन मे), अथवा अपूर्णतया ज्ञात का (जंसे-नीति- दर्शन ओर राजनीति-दर्शन मे) । दर्शन सत्य के घेरे में प्रथम 'दरार! है। विज्ञान एक सीमित भूमि है; उसकी पृष्ठभूमि में वह प्रदेश है, जहां ज्ञान और कला द्वारा सृष्टि की रचना होती है । किन्तु दर्शन जनक की तरह सदा ही व्यथित-सा दिखाई देता है ! वह व्यधित इसलिए है कि बिजय का श्रेय सदा बह अपने संतानों--विज्ञानों को देकर, स्वय अज्ञात और अविहरित प्रदेश में नई खोज के लिए मटकता रहता है।” ` कुछ विचारक विज्ञान और दर्शन की तुलना करते समय विज्ञान को “दर्शन! से अधिक पूर्ण बताते है। किन्तु यह अभिप्राय सत्य नहीं लगता । यह निःसदेह कहा जा सकता है कि दर्शन का स्थान विज्ञान से नीचा नहीं है । बल्कि दर्शन विज्ञान से अधिक साहसिक है । जैसे कि विल डूरण्ट ने एक स्थान में लिखा है :' “प्रायः ऐसा प्रतीत होता है कि विज्ञान की जीत होती है और दर्शन की हार । किन्तु इसका कारण यही है कि दर्शन उन समस्याओं को १. फिजिक्स एण्ड फिलोसफी के भ्रिफेस से । হ. হী स्टोरी ऑफ फिलोसोफी, पृ० २ । है. वही, पृ० २।




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