करकंड चरिउ और मध्ययुगीन हिन्दी के प्रबन्ध काव्य | Karakand Chariu Aur Madhyayugin Hindi Ke Prabandh Kavya

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Karakand Chariu Aur Madhyayugin Hindi Ke Prabandh Kavya by अपरबल राम - Aparabal Ram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवेश मध्यकाल से हमारा यहाँ अभिप्राय हिन्दी साहित्य के मध्यकाल से है, भारतीय इतिहास के मध्ययुग या मध्यकाल से नही | आघा्यं प° रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का इतिहास मे समूचे हिन्दी साहित्य को आदि, पूवंमघ्य या मक्त, उत्तरमध्य या रीति और आधुनिक नामक घार कालों मे विभाजित किया हैं। जिस मध्यकाल को आचाये शुक्ल ने पूर्व॑मध्य तथा उत्तरमध्य या मक्ति और रीतिकाल दो भागों में बाटा है, उसे ही मिश्रबन्धुओं ने पूर्व, प्रौढ तथा अलंकृत नाम से तीन उपविभागों में विभाजित किया है।' आचाय॑ महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य के इतिहास को बीजवपत, अंकुरो:द्रव और पत्रोदगमकाल के नाम से तीत मांगों मे विमक्त किया है ।* द्विवेदी जो का अंकुरोद्भव या मध्यकाल ही शुक्ल जी का पूर्वेमध्य तथा उत्तर- मध्य मौर मिश्रबन्घुमो का पुर्व, प्रौढ एवं अलंकृत काल है । हिन्दी कविताओं पर जहा से संस्कृत माषा तथा साहित्य का प्रमाव स्पष्ट दिखाई पडने लगता है व्ही से महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने सनु १४००-१८५० ई० तक अक्रुरोद्धव या मध्यकाल कौ सीमा को स्वीकार किया है। आन्षाये महावीर प्रसाद हिवेदी ने हिन्दी कविता के जिस काल को अंकुगोद्धव काल कहा है, वास्तव मे वहं हिन्दी कविता का मध्यकाल ही है। मध्य- कालके प्रारम्भ के विषय मे चाहे आचार्यं रामचन्द्र शुक्ल, मिश्रबन्धु एवं माचायं महावीर प्रसाद द्विवेदी मे भले ही मतैक्य न हो, परन्तु जहा तक मध्यकाल की अन्तिम सीमा का प्रश्न है प्राय: ये समो विद्वानू प्माकर एवं द्विजदेव का कविता काल बआर्थात्‌ लगभग संबत्‌ १६०० को मध्यकाल का अन्त मानते हैं |? । आचार्य पं० रामचन्द्र शुक्ल ने संदत्‌ १३७५ तथा आचाये महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सन्‌ १४०० ई» अर्थात्‌ संवत्‌ १४५७ को हिन्दी-मध्यकाल का भारम्म माना है । हमारे आलोच्यकाल के प्रयम्‌ प्रबन्ध कव्य मल्ला दाऊद कृत चंदायन का रचनाकाल भी विद्वानों ने सनु १३७६ ई° स्वीकार किया हे ।४ यह्‌ समय अलाउद्दीन खिलजी के राज्यकाल का था, जिसमे हिन्दुओं पर बहुत सख्ती की जा १--मिश्रबन्धु विनोद 'मिश्रबन्धु'। २--हिन्दो साहित्य की वर्तमान अवस्था तासक लेख से (আনান महावीर प्रसाद हदिवेदी द्वारा १६११ ई० में हिन्दी साहित्य सम्मेलन ह्रि० में पढ़ा भाषण ) 1 ३--महाकवि मतिरास और मध्यकालीमे हिन्दी कविता में अलंकरण-बुति ; डा० त्रिमुवन सिंह, यू० ४६ | ४--कुतुबन कृत मृगावती- सं० डा० शिवगोपाल मिश्र, भूमिका, पृ० २१ ।




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