बुनियादी सिक्षा | Buniyadi Shiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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हुए हैं ? उत्तर मिलेगा-नहीं। इन साधनों की विध्व॑सकारी शक्ति
से कौन परिचित नहीं है । क्या इसी बुद्धि के विकास को शिक्षा
का ध्येय माना जा सकता है? कद़ापि नहीं। शिक्षा के साथ
सभ्यता की भी आवश्यकता है ) इसी को संस्कृति भी कहते हैं ।
ऊसर के विचारों ने शिक्षा के उद्देश्य में हेर फेर कर दिया और
संस्क्रति ही शिक्षा का ध्येय माना जाने लगी । ज्ञान मनुष्य के
मस्तिष्क को बनाता हे तो संस्कृति मनुष्य के हृद्य को वनाती है ।
यह् जीवन को सुन्द्रता ओर सरसता प्रदान करती दै । इसीलिये
शिक्षा के अन्तर्गत ज्ञान की दोनों शाखाओं को स्थान दिया गया
है विज्ञान हमारे मस्तिष्क की साधना का साधन दे तो कला
हमारे हृदय की साधना का अंग है। ससार के विचारकों ने जो
सचसे श्रे सोचा है छर कटा ह वदरी जीवन की कला & ! इससे
अवगत कराना शिक्षा का उदेश्य माना गया हे ।
संस्कृति के उदेश्य को अपू मानकर सम्पूणं जीवन की साधना
शिक्षा का उदेश्य माना गया । इसके अनुसार जीवन के प्रत्येक क्षेत्र
मे यञ हार कुशल्षता को प्रधानता दी गई । ভুহলত্ स्वेसर की भाषा
में जीवन की लम्बाई और चोड़ाई की साधना ही शिक्षा है जिससे
मनुष्य दीघे जीवन के साथ साथ अपने जीवन में अनेक प्रकार की
क्रियाशीलता द्वारा अपने जीवन का पूरा अदर्शन कर सके इनके
मतानुसार शिक्षा के पॉच अंग वनाये गए हं। (१ ) आत्म संरक्षण,
(२ ) जविकोपाजन, (३ ) वंश बृद्धि तथा चच्चों का पालन पोषण
४ ) सामाजिक तथा राजनतिक कुशलता, (५ ) अवकाश का
सदुपयोग ।
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यद्यपि इनके अन्तर्गत जीवन के क्षेत्र की सम्पूर्ण शित्ता का
समावेश हे ओर शिक्षा की दोनों शाखाओं--कला और चिज्ञान--
को समुचित प्रधानता दी गई दे तो भी उन्नति को तोलने की कोई
तराजू निश्चित नहीं की गई है । नेतिक शिक्षा का दृष्टिकोण चिलङ्ल
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