नयी कविता में मूल्य बोध | Nayi Kavita Me Mulya Bodh
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८ नयी कविता में मूल्य-बोध
३. तीसरे मानव-मूल्य विकसनशील था नये मूल्य हैं। वैज्ञानिक क्रान्ति और
तकनीकी उपकरणों के त्वरित निर्माण से जो सह-अस्तित्य, विश्व-बन्धुत्व
आदि मूल्य सामने आये, वे विकसनशील मूल्य हैं और अभी भी निरन्तर
इनमें विक्रास हो रहा है। हिन्दी की नयी कविता इन्ही मूल्यों से प्रभावित
ओर भनुप्रेरित है ।
इसके अतिरिक्त संस्कृति मौर कई तरह की अन्तरंग सभौतिक प्रवृत्तियों से
सम्बद्ध रहने के कारण कुछ मूल्य आत्मनिष्ठ या भावात्मक होते है और गाधिव-
सामाजिक परिवतंनों से सम्बन्ध रहने के कारण कुछ मूल्य वस्तुनिष्ठ होते है ।
इस अर्थ में मूल्य-जगत_ आत्मनिष्ठता और वस्तुनिष्ठता का सम्मिश्रण है।
मूल्यों का विकास प्राय: दो दिशाओं में होता है--ऊर््वे और समदिक् । मृल्य-विकास
जव ऊर्वं से समदिक् कौ भोर होने लगता हैतो लोग उसे प्रत्यावर्तन या पुरात्तनता
की ओर लीटना कहते है ।
कुछ विद्वानों ने मूल्यों को 'शाबवत मूल्य' और सामयिक मूल्य” इन दो वर्गो
में भी बांदना चाहा है, लेकिन ऐसा विभाजन उचित नही है, क्योंकि मूल्य कोई देश-
काल-व्यक्ति निरपेक्ष वस्तु नही है, वल्कि देश-काब की सीमाओ मे मूल्य भी परि-
वर्तित होते है, अत: मूल्पों का ऐसा विभाजन संभव नही है ।
विलियम लिल्ली ने मृत्यो का विभाजन करते हुए कहा है--
(मूल्यों का एक सामान्य वर्गीकरण याचक मृत्यो भौर निरपेक्ष मूल्यों के रूप
में किया गया है। वस्तु के यांत्रिक मुल्य का आधार उसकी अन्य मूल्यवान उत्पादन
की क्षमता है*** जो वस्तु स्वयं में ही उत्तम है, न कि अपने महत्व के कारण, वह
निरपेक्ष भूत्य है 1*'
यात्रिक या सहायक मूल्य तो अर्थशास्त्र का विपय है, लेकिन जिन वस्तुओं
का मूल्य स्वृत:सिद्ध है, ऐसो ही वस्तुओं, घारणाओं या मान्यताओं का अध्ययन मानव-
मूत्थो के अन्तर्गत क्रिया जाता दै। प्रसके अतिरिक्त अन्तभूत मूत्य (1111109८
০19০) का अध्ययन भी मानव-मूल्यों की हो सीमाओं में आता है ।
मानव-मूल्य फ्रितने और कौन-कौन से है, इसके निर्धारण में विचारकों ने बहुत
श्रम किया है | भारतीय विचा रकों द्वारा प्रतिपादित सत्यं, शिव, सुन्दरम् तथा पाश्चात्य
विचा रकों द्वारा प्रतिपादित 159021119 110001) 010 12101017119 (নমানলা। হনভ্ভবলা
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