भरतेश वैभव | Bharatesh Vaibhava

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“भ्रतरा पमव” স্ঠীন্বীটিতীশশ্লাটীিী নস আলসার আসিতে ু प রস ডি च त १५ ~ न व्र (¢) ^ क 0.4, ২. ट है ৮ ^ ५ গা द == এ पा ॥। ৮. 42৮০০ টু ॥ (4 ध १. „5 क তি টু श्व 9 ५, [= क २५९३ ৯৮, নন 81 টি ५५२ // है { + ५६ ৫ ५ > द ০8৫ ৮১৯৮৫ এ রশ ১ क ^ 4 म লীন পিপি भरत महाराज श्रषने पुत्र च समस्त राणियों के साथ लीला विनोद करते हुये श्रपने समय को भ्रानन्द के साय विताने के बाद व श्पनी देनिक क्रिया से निवत्त होकर राज़ दर्बार में विराजमानये कि इतने में बुद्धि सागर भसनन्‍त्री ने श्राकर दिग्विजय भ्रस्यान केलिये प्रार्यना फर रहा हं 1 यह चित्र मूलचन्द छोटेलालजी जैन तिलोकपुर की ओर से छपा 1




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