भरतेश वैभव | Bharatesh Vaibhava
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
416
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्या देशभूषण मुनि जी महाराज -Aacharya Deshbhushan Muni Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“भ्रतरा पमव” স্ঠীন্বীটিতীশশ্লাটীিী
নস আলসার আসিতে
ু प রস ডি च त १५ ~ न व्र (¢)
^ क 0.4, ২. ट है ৮ ^ ५
গা द == এ पा
॥। ৮.
42৮০০
টু ॥ (4
ध
१. „5 क তি টু श्व 9 ५, [= क २५९३ ৯৮, নন
81 টি ५५२
// है { + ५६ ৫ ५ > द ০8৫ ৮১৯৮৫ এ রশ
১ क ^ 4 म লীন পিপি
भरत महाराज श्रषने पुत्र च समस्त राणियों के साथ लीला विनोद करते हुये श्रपने समय को भ्रानन्द के साय विताने के
बाद व श्पनी देनिक क्रिया से निवत्त होकर राज़ दर्बार में विराजमानये कि इतने में बुद्धि सागर भसनन्त्री ने श्राकर
दिग्विजय भ्रस्यान केलिये प्रार्यना फर रहा हं 1 यह चित्र मूलचन्द छोटेलालजी जैन तिलोकपुर की ओर से छपा 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...