गांवों में औषधरत्न भाग - 1 | Ganvon Men Aushadharatn Bhag - 1

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Ganvon Men Aushadharatn Bhag - 1 by कृष्णनन्द - Krishnanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका संसार परिवर्तनशील है | दिन के चाद रात और शत के बाद दिन होना श्रघ- श्यंभावी है। सद वपं पश्चात्‌, कालचक्र का परिक्रमण करता हुआ श्रायुवेंद का सूर्य पुनः उदयाचल के शिखर पर उदीयमान होता हुवा दृष्टिगोचर हो रहा है, यह हमारी सौमाग्यवेला का सुमधुर हास है । हमारे दृदयों में झ्राज हम एक अलौकिक स्फूति का अनुभव कर रहे है ] निस्वय ही हमारा लक्ष्य परम कल्याणभय, परमसस्य एवं परमप्रश्नत्त है, मार्ग की अस्यिर कठिनाइयां हमें अपने उद्देश्य से विचलित नहीं कर सकतीं | पदिले हम अपने लक्ष्य पर १हुँच चुकेंगे, सफलता पील से हमारा श्राहान फरती हुई अनुगमन करेगी। आयुर्वेद का जो साज्ञोपाज्ञ वैशानिक वर्णन आज उपलब्ध है, वह आज के इस वैक्षानिक युग में भी नितनूनन दी बना हुआ ६। जिसके विषयमे चरक की यह उक्ति श्रश्षरशः सत्य दै कि--“्यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तक््वचित्‌ ” । भारतवर्ष. हजारे वर्ष पदिले चिकित्ता शास्त्र एवं ओऔषधघविज्ञान के सम्बन्ध में जो चमत्तारिक साहित्य निर्माण हुआ, उसे देखकर आज हमें आ्राश्चर्य हुए. चिना नहीं रहता | उन হিনা ভাবী रुपयों की लेचोरेटरीज ( रखायनशालाएं ) श्रणुवीक्षण- यन्त्र तथा एक्सरे आदि आज जैसे साधन उपलब्ध नहीं थे। यह साहित्य निकालदर्शी योगियों के शानवल्ल से प्राप्त किया चिकालावाधित परम सत्य है। इसमें मानवब्ुद्धिगत साधारण दोपों की सम्मावना नहीं । श्राज जो हम लोग विछायत आदि विभिन्‍न देशों से आई हुईं तरह तरह की रंगीन बोतलों से भरी हुई श्रौपधियों की बाजार में भरमार देखते हैं। जिनके ऊपर गरीब तथा अमीर दोनों ही समान रूप से घन खर्च करने में नहीं दिचकिचाते, उन ओषधियों में अधिकांश वे ही ओपधियां हैं, जो कि प्रतिदिन,हमारे पैरों तले कुचली जाती रहती हैं । आयुर्वेद में ऐसी अनेकों ओऔपधियां हैं जो कि सफलता के साथ कई प्रसिद्ध अंग्रेजी औपसधियों वी बराबरी का कार्य कर सकती हैं| ब्ड्ड्प्रेसर के लिये सर्पगन्धा, लहसुन, गुग्युल; भ्रादि डिपेन्टरी के लिये कुट्ज एवं मधुमेह के लिये सालसाराद्गण जामुन, उत्ताज्ञी आदि ओपधियां किसी भी विदेशी औषधि से कम नहीं हैं। गुर्दे की बीमारी पर स््रिटःईथर नाइट्रोसी तथा इपिकेकोना की जयह अ्रनन्तमूछ एवं आड़े फी जड़, वेलाडोना की जगह घतूरा, रक्तविकार पर सार्सापरिलां की जगद श्रनन्तमूल, पोयस ब्रोमाइड के स्थान पर हरमल, क्वासिया के स्थान पर नीम, बेलेरियन के स्थान ` पर जयमांसी, डिजीटेलस के स्थान पर कुटकी आदि अनेकों ऐसी ओऔषधियां हैं, जो




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