प्राचीन भारतीय राजनीतिक विचार एवं संस्थाएँ | Prachin Bhartiya Rajneetik Vichar Avam Sansthae

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन भारतोय राजनंतिक विचार एवं मंस्पायें है जो कि न बेवल ब्यवितगत रूप से दरव्‌ सामाझित्र रूप से भी कल्यारागव है। ? महामारत में प्रजु न ने दताया है कि अच्छी নই प्रयोग में साया हृष्रा दष्ड प्रजाजनों वी रक्षा करता हैं। उदाहरण के निए অং वुभ्पते लतो है तो वह फूव वी फडकार पड़ने पर डर जाती है ठथा दण्ड ने प्रज्दलित हो उठती है।? इस प्रद्ार प्राचीन मास्तीद ग्रन्यों महत्व वो समझा या और राज्य के सगठन नया वार्यो से सम्बंधित झाम्त्र को दष्डनीति कहना ही उपयुक्त समझा । सहाझारन में ब्यास दो द्वारा दुधिष्ठिर को यह सुझाया गये है कि जो ब्यक्ति देदान्त, बेदअ दी, वार्ता तया दष्ड नोति का परगत विद्वान हो उसे किसी भी कार्य में नियुक्त किया झा सकता है। क्योंकि ऐसा व्यक्त दुद्धि की परावाष्ठा को पहुचा ह्मा होता है। है दाड नीति के माध्यम से अप्राप्प वस्तुओं को प्राप्त कया दाता है, प्राप्त दस्पुप्नों वो रक्षा की जाती है ओर रक्षित दस्तुप्रों की झमिदृद्धि वी जाती है। उप्र ने अपने ग्रन्य का नाम दष्डमीति ही रखा है ॥ महाभारत में मो दण्ड नीति नाम के एक ग्रन्थ का उल्लेख श्राठा है जिसद्ाा रचपिता प्रजापठि को कहां गया है। मनु के कथनानुमार दण्ड देने वाला व्यक्ति राजा नहीं है प्रपितु स्वयं दण्ड ही भामक है 1£ राज्य मे दष्ड के इस पह्रत्यधित्र महत्व के परिणाम- स्वरुप हो शासकों के कार्यों तथा समाज दे कल्याथ का दर्रणन करने वले शास्त्र को दष्ट नोति के नाम से जाना गया। क्ौटिस्य के प्रद्भास्व को भी कई स्थानों पर दण्ड नीति के नाम से ही पुकारा गया है । उम्नम्‌ रुया प्रदड,प्रति द्वारा शासन तत्र पर लिखित ग्रन्य मी दण्ड नोति के नान से प्रदिद्ध हैं । आगे चल कर राडनीति शास्त्र विषय के लिए प्रर्थशास्त्र शब्द का प्रयोग जिया जाने लगा। मि० डायमवाल ने श्रधगान्वर का जनपद सम्दधी शास्त्र [०८ ९ ए०कक्माण्ा1८०1४) कहा है 1 दने वतमान समयमे पर्थ- आस्त्र शब्द का प्रयोग प्रायः सम्पत्ति जास्त्र (£८०४०४ा४ई८४) चे निष्‌ हिया जता है कयोवि शरव ब्द प्राय: पैसा या सम्पत्ति का समानार्थक्र हैं। ैडिल्य की यह मान्यता है कि अब्द का प्रयोग ল केदल वउक्ष्तियों के व्यवमार्यों या घन्धों নী को निर्देशित करने के लिए हो शिया था खत्रता है दिन्‍्तु उस भूमि के लिए भी किया डा सकता हैं जिस पर रह वर क्नि उनके द्वारा व्यवनाय का संचालन किया जाता है। मानव जोवन छे संचालन का आधार भूमि है झषवा यो कहिये कि नूर में हो व्यक्ति समाहिव रहते हैं। प्रयेशास्त्र एक ऐसा दिज्ञान है जो कि यह बताठा है कि नूमि को छँसे प्राप्त किया जाये तथा किस प्रकह्मर से उप्तकी रक्षा वी जाये । औटटेल्य का अर्थेद्वास्त्र मानवयुकत भूमि की प्राख्वि एवं उसके रल्लण के उरो का दिग्दर्मेने कराठा है । ओऔौडिल्य ने दप्डनीति शब्द की व्यारुरा करते हुए दताया है क्रि इसका सम्दघ चार दार्तो 1. कौटिल्य, म्र्य्यस्वर, १ (४) 2. महामारत-घान्तिषदं, १५ (३१) 3. महासारत-शान्ति पे, रड (१८) 4. “स राजा पुरषो दण्डः तनेता यस्माच दः 1 --मरुस्पृति, ७ (७)




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