भारतीय संस्कृति के मूलाधार | Bhartiya Sanskrti Ke Mooladhar
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकाशक की ओर से
इस पुस्तक की लेखिका डॉ० स्वर्णलता अग्रवाल से हिन्दी भाषा के जानकार भली-
भाति परिचित हैं । शिक्षा जगत् मे उनका अपना एक विशेष स्थान है। लगभग
त्तीन दर्जन पुस्तको की रचना करने के अतिरिक्त उन्होंने कई सामाजिक्व
शैक्षणिक सस्थाओ की स्थापना व सफल सचालन किया है। उत्तरी राजस्थान में
শন द्वारा स्थापित शिक्षण सस्थाओं में हजारो बालक-बालिकाएं ज्ञानार्जन कर
रही हैं । १ £
५ (1 एक सामान्य बालिका की तरह अपना जीवन प्रारभ विया । अपनी
कठोर श्रम-साधना, दृढ़ सक्ल्पशक्ति, शिक्षा के प्रति समाव, सचफो साष लेकर
चलने की कला, ईश्वर मे अटूट आस्था, सवके प्रति भलाई को भावना आदि कुछ
ऐसे गुण हैं जिनके सहारे वे आगे बढती गईं।
!। स्वामी विवेकानन्द, स्वामी शिवानन्द, महात्मा गाधी और सत विनोबा जैसे
महापुरुषों के साहित्य ने आपको बहुत अधिक प्रभावित किया । इस साहित्य के
अध्ययनसे आपकी कार्यंशैली नैतिकता, घामिकता और आध्यात्मिकता के विचारों
से ओोतप्रोत हो गई | आपने देश वी नयी पीढी को भी इसी प्रकार के साहित्य से
लाभान्वित करने का निर्णय कर লিযা।
अध्यापन के क्षेत्र में कार्य करते-करते वे एक स्नातकोत्त र महाविद्यालय के
प्रिसिपल के पद पर पहुच गईं। आप राजस्थान विश्वविद्यालय की सीनेट,
एक्रेडेमिक कौंसिल, बोर्ड ऑफ स्टडीज आदि वी सदस्या भी रही । आप २२ वर्षों
तक भारत स्काउट्स एव गाइट्स सगठन से सबधित रही ओर स्टेट कमिश्नर के
रूप मे रिटायर हुईं। राष्ट्रीय बचत योजना बोर्ड, भारत सेवक समाज, राष्ट्रीय
विकास योजना तथा राष्ट्रीय सैनिक भ्रशिक्षण योजना जैसे संगठनों को आपका
सक्रिय योगदान मिलता रहा ।
आप द्वारा सस्थापित और सचालित शैक्षणिक और सामाजिक सस्थाओं के
छात्र-छात्राओ, शिक्षकी, कमेंचारियों और सहयोगियों द्वारा आप 'माताजी' के
नाम से पुकारी जाती हैं। सचमुच आपसे उनको मा-सा स्नेह मिलता है। निर्धन
भीर पिषठडी जाति की छात्राओ कौ प्रहिलाओ के लिए हो वे जन्म-दामिति मा
वी तरह ही हैं। परन्तु इतने सब कामा मे व्यस्त रहकर भी उन्होने साहित्य-
सृजन का प्रेरक कार्य भी चालू रखा है । सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का बोध और
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