लड़खड़ाती दुनिया | Ladkhadati Duniyaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शान्ति और साम्राज्य यह परिपद्‌ “इण्डिया लीग? और “ढण्डन फेडरेशन भाँव पीस कौन्सिल्स' सस्थाओ की ओर से शान्ति और साम्राज्य कौ समस्यागो ५९ विचार करनें के लिए बुलायी गयी है । शान्ति और साम्राज्य (-- मूल मे ही एक दूसरे के विरोधी शब्दों और विचारो का यह बनोखा मेल हैं, लेकिन मेरी समश्च मेँ उनको इस तरीके से एक साय नने भौर परिपद्‌ की आयोजना करने की सूझ आनददायक रही । में समझता हूँ जवतक हम अपने साम्राज्यवादी विचारों को दूर न कर देंगे, तवतक हम इस दुहि मे 'शान्ति' नही पा सकेगे 1 इसङ्एि शान्ति कतौ समस्या का सार समज्य कौ समस्याही हं । जबतक साम्राज्य फूलते-फलते रहते है, तवतक ऐसे अर्से जा सकते हे नबकि राष्ट्रों के वीच खुली लड़ाई न हो रही हो, लेकिन तव भी शाति नही होती, क्योकि तव सवषं और थुद्ध की तैयारियाँ चलती रहती है । सामराज्यवादी विरोषी राष्ट्रो मे, रासन करनेवाी तत्ता मौर शासित जनता में और वर्गो में सघर्ष तो रहता ही है क्योकि साम्राज्यवादी राष्ट्र का आधार ही शासित जनता का दमन ओर शोषण है इसलिए लाजमी है कि उसका विरोध भी होगा और उस शासन को फेक देने की कोशिश की जायेगी । इस बुनियाद पर कोई शाति कायम नहीं की जा सकती | आप और में फासिस्ट हमलो के इन दिनो में फासिस्ट आतक को रोकने के लिए अक्सर कुछ न कुछ करते रहते है, लेकिन हमेगा साम्राज्य- वादी विचारों को भी रोकने के लिए ऐसा नही करते। वहत-से छोग




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