कथासरित्सागर भाग - 2 | Katha Saritsagar Bhag - 2

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Katha Saritsagar Bhag - 2 by केदारनाथ शर्मा सारस्वत - Kedarnath Sharma Saraswat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सप्तन ह्वयक छ इस प्रकार, बहुत विन व्यतीत होने पर भी उसे पुत्र की प्राप्ति नहीं हुईं । एक बार उसे इस बात पर गम्भीर चिन्ता उत्पन्न हो गई।॥२७॥ उसे अत्यन्त चिस्तित देखकर रानी अलंकारप्रभा ने उसकी उदासी का कारण पूछा ॥२८॥ प्रथा सुनकर राजा ने कहा--देवि ! मुझे सभी प्रकार की सम्पत्ति प्राप्त है, किन्तु एक पुत्र का अभाव भेरी चिन्ता का कारण हो रहा है ॥२९॥ मैंने एक पुत्रहीन सत्त्ववान्‌ मनुष्य की कथा सुनी थी, उसके स्मरण आने पर आज चिन्ता बढ़ गई है ।३०॥ वह कैसी कथा है ? -- इस प्रकार रानी के पूछने पर राजा ने संक्षेप से वह कथा इस प्रकार सुनाई 11३ १॥ ^ राजा सश्वशोल की कथा चित्रकूट नामक नगर में ब्राह्मणों की सेवा में निरत ब्राह्मगवर नामक यथार्थ नामवाला राजा था॥३२॥ उसका सत््वशील नामक एक विजयी और युद्ध में सहायता करनेवाला भक्त सेवक था। उसे राजा प्रतिमास एक सौ स्व्ण-मुद्रा वेतन के रूप में देता था ॥॥३३॥ किन्तु परमं उदार उस सत्त्वशील के लिए इतना घन पूरा नही होता था; क्योंकि पुत्र न होने के कारण वह उस बन को दाल कर देता था॥३४।॥ बहू सोचता था कि विधि ने मेरे मनोविनोद के लिए एक पुत्र वहीं दिया, केवल दान देने का व्यसन दिया, वहू भी धन के बिना ॥३५॥ संसार में पुराने और सूखे वक्ष या पत्थर का जन्म होना अच्छा है; किन्तु दान का व्यसनी होकर दरिद्र होना अच्छा नहीं।॥।३६॥ ऐसा सोचते हुए सत्त्वशील ने घूमते-घामते दैवयोग से अपने उद्यान में कोष (खजाना) प्राप्त किय्रा ॥३७।॥ अपने नौकरों की सहायता से, वह सत्त्वशील अपरिमित स्वर्ण और रत्नों से भरे हुए खजाने को, अपने घर उठवा ले गया।॥३८॥ इतना धन प्राप्त करके वह सुख-भोग करता, दान देता ओर मृत्यो तथा मित्रो को बाँदता हुआ सुख से रहने लगा ।\३९॥




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