काव्यशास्त्रीय निबन्ध | Kavyashastriy Nibandh

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Kavyashastriy Nibandh by सत्यदेव चौधरी - Satyadev Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काध्यशास्त्रीय परम्परा १७ ही नित्य धर्म वन गये । रीति सघटना-मात्र तथा रसोपकर्त्नी वन गयी । दोपों का अनोचित्य तथा उनकी नित्यानित्य-व्यवस्था रस पर ही श्राधृत हो गयी । निष्कपं यह कि भामह, दण्डी, उद्भठ और वामन के सिद्धान्त इनके व्वनि- सिद्धान्त के आगे न केवल बदल गये अपितु मन्द पड़ गये । इनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व ने काव्यगास्त्रीय आचार्यो में विभाजन-रेखा खीचकर इन्हें दो भागो में विभक्त कर दिया--पूर्वध्वनिका लीन झ्राचार्य श्रौर उत्त रध्वनि कालीन श्राचायं। व्वन्यालोक के प्रधान टीकाकार अ्भिनवगुप्त है। टीका का नाम लोचन' है | ध्वन्यालोक के प्रथम उद्योत का श्रग्रेजी-अनुवाद, तथा सम्पूर्ण ग्रन्थ की हिन्दी-व्याख्या प्रकाशित हो चुकी है। इस व्याख्या के कर्ता आचार्य নিহনভনহ है | प्रथम उद्योत के लोचन-भाग का हिन्दी-अनुवाद आशालता ने प्रस्तुत किया है। 'लोचन' टीका-सहित इस ग्रन्थ की हिन्दी-व्याख्या इन्ही दिनो प्रणीत हो रही है । ८. अभिनवगुप्त अभिनवगुप्त दशम गती के अन्त और एकादण गतीके आरम्भ मे विद्यमान ये । इनका कान्यनास्त्र के साथ-साथ दकन-जास्म पर भी समान अधिकार था। यही कारण है कि काव्यभास्त्रीय विवेचन को श्राप अत्यन्त उच्च स्तर पर ले गये---ध्वन्यालोक पर 'लोचन” और नाट्यगास्त्र पर अभिनव- भारती” नामक टीकाए इसके प्रमाण है । इन टीकाओं के गम्भीर एवं स्वस्थ विवेचन तथा मामिक व्याख्यान के कारण इन्हे स्वतंत्र ग्रन्थ का ही महत्त्व प्राप्त है, और अभिनवगुप्त को टीकाकार के स्थान पर “आचार्य जँसे महा- मह्मिणाली पद से सुशोभित किया जाता है । “लोचनः ग्रीर 'अभिनवभारती' भे स्थान-स्थान पर इनके गुरुओ--भट्टेन्दुराज और भट्टतौत (तोत) के भी सिद्धान्तो का उल्लेख भी बडे समादर के साथ क्रिया गया है । इनके अतिरिक्त भरत-सूत्र के अन्य व्याख्याताओं--शकुक, लोल्लट तथा भट्टनायक के मभिद्धान्तो की चर्चा भी इन ठीकाओं में की गयी है| इस प्रकार ये दोनो टी काएं संद्धान्तिक क्रमिक विकास को प्रतिपादित करने की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपुर्णा बन गयी है। अभिनवगुप्त का अभित्यक्तिवाद' रससिद्धान्त मे एक प्रौढ एवं व्यवस्थित वाद है, यद्यपि इस वाद का समय-समय पर खण्डन किया गया, कितू फिर भी यह वाद अद्यावधि अचल वना हुआ है | यहाँ तक कि जगन्नाथ जैसे पण्डितराज ने भी इसे ज्यों का त्यों अपना लिया था | अभिनवभारती' (१ म, २ य, ६ 5 अध्याय ) की हिन्दी-व्याख्या आचार्य




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