प्रतिभा दर्शन | Pratibha Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
613
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क
( १४ )
देय यी में प्रतिपादित किया गया है। क्योंकि इस विपय परः प्रनयेकं मान्न
ने अपना-अपना पृथक पृथक् साग आका रवा दै) अतः सवसे पहले अर्धबोध की
बासमबिक स्थिति को सामने रुख कर, अक्षरपाक पर विचार प्रस्तुत करके
सफाट के रागात्मक पक्ष की विवेचना देने के पद्चातु पतंजलि मत, व्यायशास्त्र
मत, बोद्ध मत, आ्ंकारिक मत, मीमांसक मत, सांख्य मत का विवेचन तथा
उनकी भूंखों का संशीधन कर दिया गया है | इस प्रकार इस खण्ड में स्फोटसंबंधी
फोर्ट भी ऐसा विपय झोत नहीं रह गया है. जो विद्यमान रहते इसमें स्थान न
था सका हो, प्रत्युत इसमें वे सब विपय भी स्थान पा गये हैं जिनकी अभी तक
कई बड़े विद्वानों को हवा লক্গ नहीं लग पाई है। अतः यहु खण्ड स्फोट के
मम्बन्ध में एकं परिपूर्णं ग्रन्थ है । प्रत्येक विषय को उचित प्रमाणों, तथ्यों और
विचारों के उद्धरण। और अर्थो' से यथास्थान सुमण्डित भी किया गया है
एनना होने पर भी হল जह तक दौ सका दै अधिक विस्तार-भय से
बहुत संजप में, पर पूर्ण सर्वाङ्गीण रूप मं प्रस्तुत किया गयां रहै) उर
प्रकार यह पूर्णं खण्ड इसन चिणय की नवीन जौर आवश्यक खोजों की अनुपम
खान है | * * 9
चतुथे खण्ड
प्रस्तुत चण्ड मे ष्वणवैचिव्य की महामाया का विवेचन है। इसमें
आधुनिक भाषाओं की व्याह्या किंस प्रकार की जानी चाहिए, इसका एक
आदर्श उदाहरण अपनी मातृभाषा कुमाउनी के शब्दों, पदों और লাগত লগা
ध्वनियों का सविस्तार परम्परापूर्ण विकास रूप में दिया गया है। इस प्रकार के
विवेचन की नींव यासक ने अपने निरुक्त में डाकू दी थी, उनके पहले के उल्लेख
और ग्रन्थ नहीं मिलते । अतः उसी को आधार बनाकर प्रथम अध्याय में---
जिनके आधार से पाइचात्यों ने भाषाविज्ञान की रचना की थी--करनी चाहिए
थी, प्रतिभाद्शन या भाषातत्त्वज्ञासत्र की--संस्क्ृत तथा कुमाउनी के शब्दों तथा
वाक्यों की परीक्षा भाषातत्वशास्त्र के अनुरूप ( --भाषाविज्ञान के अनुरूप
नहीं ) की गई है | अध्याय २ में वर्णवेचित्य से कुमाउनी भाषा की हृश्यमान
आकृति के स्वरूप की व्याख्या, अकारादि क्रम से प्रत्येक के आदि, मध्य और
अन्त के स्थानों की स्थितियों का पूर्ण विवेचन दिया गया है। इसमें उल्लेखनीय
शीर्षक ए ऐ ओ ओ की व्याख्या, तालूव्यों की व्याख्या, तथा ड ढ़ भर ड़ ढ़
और ढ, ढ़, लह দু ४७१ से पृ० ४८१ तक की विस्तृत व्याख्या है जिनके
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