आदित्यसेनगुप्त | Adityasengupat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সজল লজ १७
अुबक--हमे तो आज संध्या तक नगर सें प्रवेश करना है।
दूसरा--आज नगर-प्रवेश न हो सकेगा ।
युवक--युफे तो अवश्य जाना ही होगा । सम्राट से आज न
भिल्ल सकने पर मेरा काम नहों चल्ल सकता।
तीसरा--ओह ! प्म्नाट के कोई विशेष सहायक जान पड़ते
(बालिका से) चयो स, छोरी, तुके मी क्या सम्राट से अत्यन्त
आवश्यक काय है ! इधर तो आ | छिप क्यों रही है ?
युवक्र--सभ्यवा से बति कशे। बीर-शिरोसणि भरद्टारक- .
पादीय सहानायक कणंदेव के वंशधर की देसी वाते सहन करना
सवथा असम्भव सा ही प्रतीत होता दै ।
ला--ओह ! तब तो भ्रद्टारक-पादीय (श्रॉखें मठकाता हुआ)
के सुपुत्र को गली गली कूचे कूचे एक अवारा छोकरी को लिये
फिरना सवथा सम्भव प्रतीत होता है |
युवक--चुप, उद्दृण्ड, नीच !******
पहला--(प्रहुर करता है)
[चारों ओर से अनेक सैनिक मिलकर युवक पर प्रह्मर करते हैं। युवक
वीरतापूर्वक लड़ते लड़ते चार सैनिकों को मार गिराता है |
देखते देखते बहुत से सैनिक आ जाते हैं और युवक
घायल होकर गिरता है| बालिका चिल्लाती है।
` दो एक सैनिक उसे पकड़ लेते हैं ]
एक सेनिक--चल चल, छोकरी ! इसे मरने दे ।
(बालिका चिल्लाती है, सैनिक उसे कठोरतापूर्बक घसीट ले जाते हैं )
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