आदित्यसेनगुप्त | Adityasengupat

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Adityasengupat by कंचनलता सब्बरबाल -Kanchan Sabbarbal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সজল লজ १७ अुबक--हमे तो आज संध्या तक नगर सें प्रवेश करना है। दूसरा--आज नगर-प्रवेश न हो सकेगा । युवक--युफे तो अवश्य जाना ही होगा । सम्राट से आज न भिल्ल सकने पर मेरा काम नहों चल्ल सकता। तीसरा--ओह ! प्म्नाट के कोई विशेष सहायक जान पड़ते (बालिका से) चयो स, छोरी, तुके मी क्या सम्राट से अत्यन्त आवश्यक काय है ! इधर तो आ | छिप क्यों रही है ? युवक्र--सभ्यवा से बति कशे। बीर-शिरोसणि भरद्टारक- . पादीय सहानायक कणंदेव के वंशधर की देसी वाते सहन करना सवथा असम्भव सा ही प्रतीत होता दै । ला--ओह ! तब तो भ्रद्टारक-पादीय (श्रॉखें मठकाता हुआ) के सुपुत्र को गली गली कूचे कूचे एक अवारा छोकरी को लिये फिरना सवथा सम्भव प्रतीत होता है | युवक--चुप, उद्दृण्ड, नीच !****** पहला--(प्रहुर करता है) [चारों ओर से अनेक सैनिक मिलकर युवक पर प्रह्मर करते हैं। युवक वीरतापूर्वक लड़ते लड़ते चार सैनिकों को मार गिराता है | देखते देखते बहुत से सैनिक आ जाते हैं और युवक घायल होकर गिरता है| बालिका चिल्लाती है। ` दो एक सैनिक उसे पकड़ लेते हैं ] एक सेनिक--चल चल, छोकरी ! इसे मरने दे । (बालिका चिल्लाती है, सैनिक उसे कठोरतापूर्बक घसीट ले जाते हैं )




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