श्री भागवत -दर्शन | Shri Bhagwat Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
269
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्रवजी का त्तफ्स्यां के निमित्त
वदरिकाश्रम गमन
( २४६ )
आत्मस्ूपपत्यसुहदों बलमद्धकोश-
मन्तःपुरं॑ परिविहारशुवश्व रम्या। |
भूमण्डलं जलधिमेखलामाकलग्य
कालोपसृष्टमिति स प्रययो विशालामू ॥#
छप्पय
झाये निज पुर करे यज्ञ बहु वैभव वारे)
पुष्य भोगतें पाप यज्ञ तप 5 सब जारे॥
सुत, दारा, धन, घान््य जानि नश्वर सब त्याग ।
राज पुत्रकू सौँपि सतत तपमे ई लागे॥
करे सुकृत सव सुख लहै, फिरि ध्रुव वनवासी भये ।
तजि सबरे गृह भोग मुख, बदरी वन क्त चरि दये ॥
ससारी भोग यदि सुख बुद्धि से भ्रासक्त होकर भोगे जायं
सोवे बन्धन कै हेतु है उनसे ससार का श्रावागमन 'भ्रौर
% सैष मुनि षते है-- “विदुर जी ! छुवेजी भपने शरीर स्त्री,
पुथ, भित्र, सेना, सम्पत्ति सम्पन्न कोख, श्रन्य पुर्, रमणीय विहारभूमि
+ तथा समुद्र दी है मेला जिसकी ऐसी पृथिवी के राज्य श्रादि सभी को
फालकवलित सम कर या करने ददरीदन को चते गये |”
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