पच्चामृत | Pachchamrat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
जब सुमे मिली तो श्रद्धेय सगल जीके हार्थो मं उसे प्रकाशनाथं
दे डाला | यह बात सन् १६४७ १० की है ।
तात्पय यह कि धपञ्चामरतः के प्रकाशन मे विलम्ब दूश्रा है। लेकिन
भान-बूक कर विलम्ब कहीं भी नहीं हुआ है । आख़िर सहगल जी भौ
करते ही क्या? उनके संघषमय जीवन को कौन नहीं जानता ? जिस
प्रकार का व्यस्त जीवन उन्होंने व्यतीत किया है ओर जगत के लिए जीया
है उस प्रकार के जीवन में शायद श्रन्य लोग घेंट-घंट कर मर जाएँ ।
मुझे खेद के साथ लिखना पड़ता है कि 'पश्चामृत' के लिये समय का
लम्बा त्याग करने पर भी सहगल जी का उस पर पूरा सहयोग नहीं मिल
सका । आज वह पूणत: अस्वस्थ हैं ओर कई माह से अ्रस्पताल में पढ़े
शय्या-ग्रस्त हैं । जबकि ये पंक्तियाँ [लखी जा रही हैं उस समय तक के
प्माचार से कहना कठिन है कि कब तक वह हमारे बीच रहेंगे | में तो
भव-भय-हारी भगवान् से बारम्बार प्राथना करता हूँ कि वह उनके
स्वास्थ्य मं पुनः सुधार करद् । श्रस्तु।
डॉक्टर अमरनाथ का ने पञ्चामृतः की भूमिका लिख कर इसके
मूल्य में मामूली ब्ृद्धि नहीं की है।इस असीम अनुकम्पा का मूल्य में
शब्दों में क्यों आक दे:ओर कैसे आओँक द् ! प्रकाशन के विलम्ब की
पूति करने के लिए भाई नरेन्द्र ने इधर जो शीघ्रता दिखाई है उसके
लिए धन्यवाद देना वातुलता-माच्र हे । सच कहू यो यदि भाई नरेन्द्र
ने 'पशञ्मामृत' के प्रकाशन मं दिलचरपी न ली होती तो पाठकों को अभी
श्रोर प्रतीक्षा करनी पड़ती ।
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