मितव्ययता अर्थात गृहप्रबंध-शास्त्र | Mitvyayta And Grahband Shastari

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Mitvyayta And Grahband Shastari by दयाचंद्र गोपलिय - Dyachandra Gopliya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रसे मार कर अपना निर्वाह करते थे। धीरे धीरे उन्होंने पत्थरके हथि- यार बनाना सीखा जिससे. उन्हे शिकार करना बहुत आसान हो गया ] पहले छोग खेतीका काम बिलकुछ नहीं जानते थे | पीछे उन्होने अपने खानेके वास्ते अनेक प्रकारके बीज जमा करना ओर उनमेसे कुछ भाग दूसरी मौसमके लिए उठाकर रखना झुरू किया | जब धातु- अंका पता खा तव उनसे कई प्रकारकी चीजें बनाई | तरह 'तरहके औजार और मकान बनाये और इस लगातार परिश्रमसे सम्यता और सदाचारके सैकड़ों माग खुल गये। जो छाग नदियों या समुद्रोंके किनारे रहते ये, वे दृक्षोको काटकर उन्मि सपने रहनेकी जगह घना ठेते ये ओर उन्हीं पर सवार होकर अपने खानेके छिए सामग्री जमा कर छाते थे | 'धीरे धीरे इन्हीं कटे हुए वृक्षोनि डोंगियोंका और फिर नौकाओंका रूप 'घारण किया । तत्पश्चात्‌ परिवरत॑न होते होते जहाज और स्टीमर (अग-. नवोठ) भी इन्हींसे वन गये | हम पहले ही जेसे मूख असम्य रहते, परंतु हमारे ঘুখলীদ্দি অর্জীন परिश्रमने हमें मूख ओर असम्य रहनेसे बचा दिया । उन्होंने ही भूमिको -साफ करके उपजके योग्य वनाया, तरह तरहके यंत्रोंका आविष्कार किया ओर अनेक विद्याओं और शात्लोंकी रचना की | उनके इस अपरिमित अमके कारण ही आज हम छाम उठ रहे हैं। प्रकृति हमको बताती है [के जो को३ अच्छा काम हो जाता है, वह सवंधा कभी नष्ट नहीं होता | इसी लिए आज हम उनकी याद करते है जो पूर्वमें अपने परिधत्ते सफर्ता प्राप्त करके इमरान भूमिये शयन অহ হই ই | লক वड़े कारीगर, शिस्पकार जो ताजमहल सरीखी इमारतें चना गये हं ओर अघ्यं शिलकौदङ यर नक्श्तारीका काम कर गये हैं यद्धि वे आज इतत संसारम जीवित नही है, किंतु उनकी अजर अमर्‌ ~+ +079




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