ऋग्वेद - संहिता | Rigved - Sanhita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श् खरीक आम्वेद-संहिता [ হ আঞ্। হ সঞ্। € আঞ্যাণ্। १ अनुर
श्रा सीमरोहत् सुयमा भवन्तीः पतिशिकितवात्रयिविद्रयीणाम् ।
मर नीलष्ष्टो ्रतसस्य धासेस्ता श्रवासयत् पुरुधप्रतीकः ॥ ३ ॥
महि त्वाष्टूसुजयन्तीरजुर्य स्तभूयमानं बहतो वशन्ति ।
व्यङ्गेभिर्दिदयुतानः सधस्थ एकामिव रोदसी श्रा विवेश ॥ ४
जानन्ति वृष्णो श्ररषस्य शेवमुत बध्रस्य शासने रणन्ति ।
दिवोरुचः सुरुचो रोचमाना इडा येषां गग्या माहिना गीः ॥५॥
उतो पितृभ्यां पविदानुघोषं महो महदूभ्यामनयन्त शूषम् ।
उक्ता ह यल परिधानमक्तोरनुसवं धाम जरितुवयत्त ॥ £ ॥
श्रष्वयभिः पथिः सप्तविप्राः भियं रक्तन्ते निहितं पदं वैः ।
पायो मदन्त्युच्तणो श्रजरयां देवा देवानामनु हि व्रता गुः ५५७
३ धनो श्रेष्ठ धनके स्थामी, शानधान ओर अधिपाति अग्नि सझमसे संयमनीय वड्वा्ोमे
ঘন गये। श्वेत पृष्ठचाले ओर चारो झोर प्रसृत अग्निनि बड़वाआझंको, सनत गमन कर्नेके लिये
होड़ दिया ।
४ बलकारिणी ओर प्रवहमाना नदियाँ श्यग्निको धारगा करती हैं | वह महान, त्वष्टाकं पुत्र,
जरारहित ओर सारे संसारकों धारण करनेके धमभिलाषी हैं। जैसे पुरुष एक स्त्रीदं, पास जाता है,
जिसे ही अग्नि जलके पास प्रदीत्त होकर द्याधापृथियीमें घेश करते है ।
५ ज्ञोग श्ममीष्टवषीं श्ोर श्रहिंसक अग्निके श्राश्रय-जन्य सुखको जानते ओऔर महान् छग्निकी
आशासें रत रहते हैं। जिन मलुष्योंके श्रेष्ठ-स्तुति-रूप धाक्य गगानीय होते हैं, वे द्यूलोकके दीसिकर्ता
कोर शोभन वीघछि-युक्त होकर देदीप्यमान होते हैं।
है महानसे भी महाद् पितृ-मातृ-स्थानीय द्यावापृथिवीके शानके पश्चात् ऊँचे स्वग्मं की गयी
झतुंतिसे उत्पन्न सुख भम्निके निकट जाता है। जलसेचनकर्ता अग्नि राजिकी चारो आर व्याप्त स्वकीय
तेज स्सोताके पास भजते हैं ।
७ पाँच थश्वयुर्नोके साथ सात होता गमनशील अग्निके प्रिय स्थानकी पत्ता करते ह । सोम
पानके लिये पूर्वकी प्मोर अनिधाल्त ध्रजर श्यौर सम-रसचरषीं स्तोता लग प्रसन्न हाते टै, क्योकि देवता-
लोग देथ-तु्य स्तोताध्मोंके यहमें जाते है ।
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