पिपासा | Pipasa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पिपासा १३९
इमारी दृष्टि ही नहीं है। दूसरों को घोखा देकर, उन्हें ठगकर, महत्व और
शक्ति का संचय करने की यह आँघी हमारी श्रंवद ष्टि को कितना पुषला
. बना रही है, इसकी ओर दम्नारा ध्यान ही नहीं जाता | हाय 1 हमारे जीवन
की यह कैसी अधोगति है ! 7
नरेंद्र मंसिफ्न है। उसे रोज़ाना दीवानी मुकृबमें फ़ेसला करने पड़ते हैं ।
बह कोर्ट में ठोक दस बजे पहुँच नाता है, सादे दघ बजे बादी ओर प्रति
बादी उसके सामने आ जाते हैं। बीच में टिफ़न की छुट्टी लेने का वह
आदी नहीं। चार-पाँच.बजे तक वह खघ ककर मेहनत करता है। वह
प्रतिदिन केम-से-कम वीछ-बाइस मुकदमे फ़रॉेसला कर देता है। इस लिए
उसका एक-एक मिनट बैंटा रहता है। दस मिनट में ही दो-चार भश्नोत्तर
करके वह् छभियोग की বলত বক पहुँच जाता है। लोग उतके न्याय
पर संदेह करते हैं। लोग उसकी प्रशसा भो करते हैं; और लोगों की उसकी
तत्कालीन निर्ण॑य-बरुद्धे पर आश्चव भी होता है; परन्त नरेन्द्र किस घाठु का
जना है, इसका पता बहुत कम लोगों को है ।
नरेन्द्र के हाथ में इस सतय एक मुकुंदमे की मिसिल है। उसके एक-
एक कागज को वह बहुत ध्यान से देख -रहा है| लेकिन आज किसी
निर्णय पर पहुँचते हुए उतकी आत्मा एक सेंशप में पढ़ जाती है ।
: इसी समय शकूंतला उसके निकट श्रा पहुँची । उत्ते देखते दी नरेंद्र
রা
: उसके शशि-म्रुत्त पर एक इृष्टि डालकर कहने लगा--विल्कुल ठीक समय
पर तुम মাই. হত) হত समय तुम्हारी ही कमी थी । शायद, तुम्र मेरी
, समस्या को ठीक तरह से इल कुर सको | मैं तो किछी निर्णय पर पहुँच
'नहों पाता ।
: “बात क्या है, पहले यह तो वताश्रो | जुरा वोच-षमम् लु, श्रपना
मे्नतानातै करल, तोरषिरश्चागे बद्” कहते हए शकं ल। के कमल
` .षद्न की सस्मित श्राभा उदीप दो उदी [उसने उसके नयन-कढोरों _में--भरी....
वारुणी नरेन्द्र के श्रेतस्तल तक पहुँचकर उसे ककोरने लगी.]>
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