प्रवेशिका परीक्षा की पाठ्यपुस्तक : भाग 2 | Praveshika Pathya Pustak : Bhag 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८4 ७); এ, তত ইত] মুন্না ৭02 ছি हु ७ के हू * ६ ' शुण हैं छत्तीस पुर, घरेता धरम” हर, मारत करम ङः सुर्मति विचारी है'। शुर्द्धे सो आँचारवंन्त, सुन्दर है रूप “कंत;- अंप्या सब ही सिद्धान्त) वॉवणी सुप्यारों है। अधिक / मधुरवेण/ फो नह छपे केण, सकर जीवां को 'सेण, ' कीरत अपारी है,' कंहत हैं. तिछोकरिख। दितकीरी” देते सीख, ऐसे भाचारज ता बन्दनाइमारी हैक ट ० ^; * पैसे आचार, न्याय पक्षों, भंद्रिंय परिणामी, परसपुज्य,' कल्पनीक-अयित' वस्तु के भ्रहणंहार, सचित के त्यागी, वैरागी; मद्दागुणी, गुण के अनुरागी सौभागो हैं। ऐसे श्री अन्‍्चायंजी महाराज आपकी ( दिवस सम्बन्धी ) अविनय आशातता की हो तो নাজাত ই आचारयजी महाराज ! मेरा अपराध क्षमा करिये, हाथ जोड़, भान मोड़, शीप ना कर +००८ चार नमस्कार फरता हूँ | ” 6 तिबखुतो आयाहिएं 'पयाहिणं वंदापि নর্ম- सामि सकारंमि' सम्मोणेमि बन्नाणं मंगल देवय॑-सेह्ये पज्जुयासामि- [ का ~ ~ ~ ० ' হাঁধন भव भव জাঘকা হাংণ হীতী 8৮.) . -` धः $ ~ री घममोचायजी मेद्वराज को बन्द्ना--समस्कार हो, जो) ^ 8 कोद कोद जगह धर्माचार्यजी की चन्दना रपौ पदी को वन्दना | डे! अत कसर लत मे «




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