जैन विद्या उपलब्धियाँ और संभावनाएँ | Jain Vidhya Uplabdhiya Aur Sambhavnay
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
312
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ने क श्वे = ७,
सैनं प्रम्थालय हमै अर उसा वारैः बजट हमै, वहः साहित्य पदृने-पदृ मे
उस पर चर्चाएँ आयोजित करने का সঙ্গলল जारी फिया जाये । शााश्व-सभाएँ
भी हो জীব ছল সকার की पीरचचाएँ भी | इस प्रस्तावना में इस सम्बन्ध में
कुष्ठ विस्तार मे लिखने का अभभिप्राय ही दह ই ছি गंगोष्दी जिन थौजनाओं' «ये
लिष्फर्ष सर्प से सामने रख रही है उनदे क्विवान्वयन का लक्ष्य ग्रन्थ्या স্রতোক্ষাল ই.
फिल्लु प्रकाशानों की साथाकता इसमें है फ्ि वे पाठ्कों' तक पहुँचे । शविद्वज्जम
समस्या के इस पहलू से 'निरपेक्ष नही टो स्पते, प्रायः है भी नही, पिन्तु इर, ,
লী ঘানি লা नही कस्ते, समाज कमै उन्थालय स्थापित छदने फे लि' पण
पर प्ररत नही फरतै । छटस्ना चाहिए |
* यजनओं का विस्तार इतना व्यापक है कि कोले भारतीय जानपी-
या फिन्ही' अन्य एक-दो संस्थाओं द्वारा इनका প্রিএাল্নঘল অল লর্ধী है ।
चिद्दत् पररिष्दों को ऽस ददिश में 0,पाशील होना चाहिए । सारी আীজলাশি।
पर वचार कटने के लिए शध संस्थाजौ फी एक संयुक्त बैठ, होना जाक्छयः
है ।
* बम्बरद संगोष्ठी की उपन्नीब्ध का शक्ति इस विवरणा में प्रीतीबी म्बत ऐ
आलेयों और भाक्षणा' की प्राय: पूरा-पूरा देने कय प्रयत्न करना बहुत व्य+
साध्य है । बहुत बड़े प्रयास, गाध्यन और प्रबन्ध ढी' आकायाता होती है।
इतनी' बड़ी गोष्ठी बुलाने दाग यह प्रार्थमक प्रयोजन बहुत अच्छी तरह सिद्ध दुः
फि प्राचीन-अवाधीन शौली के विनी क হক म॑व सामने जाया আহ কা
पद्ीतियो' की शौली अनग-अलग हौने पटर भी सगौष्ठी ठे उद्देश्य ठी জাজ পা
অন্ু্মলল আঁ কাখীল্জলল «ने पद्धति पर अद्भुत सर्प से जिचार-साम्थ उभा कर
सामने आया । वातावरण प्रीतिकर रहा |
* एक कभी ौ्व्िोवं वय ते कटयी, और इस और बार-बार वक्ताशौः
ने ध्यान आकृष्ट किया कि समय बहुत कम मिला । वक्ता ओौर श्रोता वौ
लालायित् रह गए চি তত জীন এই, कछ अौर सने । कटठिनाई यह रदी फि
बम्बई में तीन दिन ठहरना और आने-जाने की यात्रा के लिए दोनतीन दिन
कप अतिरिक्त समय निकलना पर्यस्त विन कै भारी पड़ता है । रेल में
रिरजन भी इच्छानुसार नही मिल पाता, अतः गौष्ठी के दिनों को बुर]
समत नष भा । संयोज्छ के स्प में भाईं उठा. नेमीचन्द की और मेरी कठिन
पना ददं । वह तो শী साहूजी' का सदाए' प्रत्येक क्षा उपलब्ध था, और
~5~
User Reviews
No Reviews | Add Yours...