दैवी संपद् | Daevi Sampad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ङ्क देवी सम्पदः
फक कद्र
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यरतस्त्रता और स्वतन्त्रता अर्थात् बन्धन और मोक्ष
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स्वतन्त्रता अर्थात् मोक्ष के लिए पेचेनी का कारण
यः कैसी विचित्र बात है कि ययपि संसार में सभी देहधारी,
किस्ती न क्विसो रूप में, परतन्त्र जर्यात् माँति-भाँति के
वन्धरनो से षे हुए हैं--सर्वथा स्वतन्त्र कोई भी नहीं है---फिर भी पत्येक
श्राणी स्वतन्त्रता के लिए निरन्तर छटपटाता रहता है और स्वतन्त्रता सब `
को एक समान प्यारी है | वालक, अपने पूर्वजों के अधीन; सत्र, पुरुष के
अधीनः; सेवक, स्वामी के श्धीन; प्रजा, राजा के अघीन; राजा, भरियादाओं
के अधनः छोट, वदो के अधीनः व्यक्ति समान के . भधौन एव व्यष्टि,
समष्टि के अधीन रहते हैं । आस्तिक लोग अपने को ईश्वर के अधोन मानते
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