रक्तबीज | Rakta Beej

Rakta Beej by शिव सागर मिश्र - Shiv Sagar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रक्‍तबीज | १५ समय भागवत बादू का स्वर बहुत तेज और ककश हो जाता था। गन द चुपचाप वहा से उठकर खिंसक जाया वरता था। वह जानता › उसके ` मामा उसपर अत्यधिक स्नेह रखते है। उनकी दृष्टि में वह्‌ নব जौर मामा भक्त অনা हुजा या 1 बह जानता चा कि उसकी छवि में भरी विहृति भने पर मामा जी को हादिक आधात पहुंचेगा ! इश्नलिए कभी भी मामाजी की घामिक और पोर्रणिक सान्यताओ के विरुद्ध खुल- |छनही कहा । ऐसी स्थिति में काता को लेकर मामाजी के घर यदि वह जाता तो उसकी छवि विद्वत ही नही होती, वल्कि धराशायी होकर (বিধুল हो जाती । मामा जी इस मर्मान्तक पीडा को कभी वर्दाश्त नही पतति। कावा विधवा थी । वह उसकी भाभी थी । एक जवान और खूबसूरत [मी को उसका जवान देवर घर से बाहर निकालकर अपने साथ ले #, भला दस धम विरोधी, समाज विरोधो घटना को सवण जातिका सला कमार वर्दाश्त करेगा ? मामाजी तो मात्महत्या हौ कर सेते कान-द उनकी दृष्टि म सुशील, सच्चरित्र भौर होनहार लडका था\ अशच्चरित्ध लटका अपनी भाभी को घर से भगाकर ले आये, यह बात शोएी के गले उतरने वाली नही थी १ दूं क्या विवकानद अपनी भाभी को भगाकर ले आया था ? उसके और गौ भाभी के सामन क्या कोई दसरा विकल्प नही रह्‌ गया था ? उसने पनु किया, उसके पौषे माव उसका अहकार था, या था दायित्ववोध और श्य भो ? षस दायित्वबोध गोर कत्तव्य का उत्स कहा है? परेम, निष्ठा त आस्था के अभाव भे बया दापित्वबोध अयवा कत्तव्य फी शुचिता तदै 2? १ विवकान द जेल पे लौटने वाला था। घर में उत्साह और उत्लास की वि\ दौड रही धी ! विवेकानन्द बे पिता राघव बाबू कभी सचमुच ही ॥ इसे तो कभी अकारण ही घर के भीतर-बाहर आ-जा रहे थे । आगन के ॥र वरामदे पर से ही खडे होकर ऊची आवाज मे पूछते हा ई'भरी, सुनती हो सुमन की मा। प्रमोद को अरबी की तरकारी पसन्द है। बनाकर रखा है न?” विवेकानन्द का धरलू नाम থা




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