जैन सिद्धान्त भास्कर | Jain Siddhant Bhaskar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
504
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कंटेसत नरेश रविवर्मा और उनको एक शिलालेखे
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` कदम्ब्ामल বহার দীবিনা ধাযানী হবি?
उदयाद्रि मकुय्टेय दोप्रांशरिआंशुमान् ॥
तृपश्छलनकी विष्णुद्दत्यजिष्णु/यं स्वयं
हिरष्मयचलन्मालत्यच्वाचक्रयिभावितः |
साम्राज्ये नन्दमानोपि न माद्यति परतः
भ्रोरेषा मदयस्थन्यानतिपातित्र वारुणों ॥
नम्मदं तम महीं प्रीत्या यमाश्रित्यामिनन्द्ति
कौस्तुमाभारुणच्छाय॑ बच्चो लक्ष्मीहरेरिष ॥
र्वावधि जंयन्तीयं सरेन्द्रनगरीं त्रिया
जयन्तौ च्चित्र वैलय॑त विगते ||
गेभजाडूदासीय चंदनप्रोतवानस।
तत श्रीरनमिवर्ञयाता ঘবাতান নন্বলি ||
विश्वावशुमति नाथ-नाथने सगे; चिद्घू
थारिवेन्द्रे ज्जलप जदीपमरकार कियाज्दस ॥
यस्य यि गवयं लचमीहिमकृम्भोदर च्युतैः
गज्यामिपेका का दमस्भीजशदरलज्जेलः ॥
रपुणालस्शितामोली णड) मिरिर्धारयत्त्
रेगज्ञां बहत्यय मालामिव गह्ीघर |
धम्पान्थि हरिदततेन मायं विज्ञापितों नृप! ॥
रिमतज्यीस्ल्ामिपिक्तेत बचसा प्रत्यभापत |
चतुस्म्रिशत्तम शोमद्राज्यवृद्धिसमासमा
मधुम्मासस्तिधिः पुण्या शुक्रपरेश्च सरि ॥
यदा तदा मदहायाहुरासंघामपराजितः
सिद्धायतन पूजाथ संघस्य परिवृद्धये ॥।
सेतोरुपलकस्यौपि कोर्मेंगशितां महीम्
श्रधिकार्निवत्तना्येन दते म्वामरिन्दमः ॥
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