जैन सिद्धान्त भास्कर | Jain Siddhant Bhaskar

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Jain Siddhant Bhaskar by नेमिचंद्र जैन शास्त्री - Nemichandra Jain Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किरण १ ] प ननाम ०-० +1७ ५ 0 ५३ १४ १५ १६ १७ कंटेसत नरेश रविवर्मा और उनको एक शिलालेखे 1 त ~~~ ---------*----~---~ ---- ~~~ ~~ -~ ` कदम्ब्ामल বহার দীবিনা ধাযানী হবি? उदयाद्रि मकुय्टेय दोप्रांशरिआंशुमान्‌ ॥ तृपश्छलनकी विष्णुद्दत्यजिष्णु/यं स्वयं हिरष्मयचलन्मालत्यच्वाचक्रयिभावितः | साम्राज्ये नन्दमानोपि न माद्यति परतः भ्रोरेषा मदयस्थन्यानतिपातित्र वारुणों ॥ नम्मदं तम महीं प्रीत्या यमाश्रित्यामिनन्द्ति कौस्तुमाभारुणच्छाय॑ बच्चो लक्ष्मीहरेरिष ॥ र्वावधि जंयन्तीयं सरेन्द्रनगरीं त्रिया जयन्तौ च्चित्र वैलय॑त विगते || गेभजाडूदासीय चंदनप्रोतवानस। तत श्रीरनमिवर्ञयाता ঘবাতান নন্বলি || विश्वावशुमति नाथ-नाथने सगे; चिद्घू थारिवेन्द्रे ज्जलप जदीपमरकार कियाज्दस ॥ यस्य यि गवयं लचमीहिमकृम्भोदर च्युतैः गज्यामिपेका का दमस्भीजशदरलज्जेलः ॥ रपुणालस्शितामोली णड) मिरिर्धारयत्त्‌ रेगज्ञां बहत्यय मालामिव गह्ीघर | धम्पान्थि हरिदततेन मायं विज्ञापितों नृप! ॥ रिमतज्यीस्ल्ामिपिक्तेत बचसा प्रत्यभापत | चतुस्म्रिशत्तम शोमद्राज्यवृद्धिसमासमा मधुम्मासस्तिधिः पुण्या शुक्रपरेश्च सरि ॥ यदा तदा मदहायाहुरासंघामपराजितः सिद्धायतन पूजाथ संघस्य परिवृद्धये ॥। सेतोरुपलकस्यौपि कोर्मेंगशितां महीम्‌ श्रधिकार्निवत्तना्येन दते म्वामरिन्दमः ॥




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