कौशिक जी का कथा साहित्य | Kaushik Ji Ka Katha Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन-चृत्त तथा प्रेरणा-स्ोत ११
कोई स्थान न था । इन्होने गृहस्थ की साधारण चिम्ताओ को पत्नी के हाथो में सौप
কা করন को उससे मुक्त कर लिया था। इस विषय में दुबे जी की डायरी' में स्पष्ट
सकैन करते हुए इन्होंने लिखा है--'“अपने राम का हिसाव-क्तिव से सदा अ्सहयोग
रहा है। श्रपने राम ऐसे शुष्क भौर नीरस वियय वे पास भी नही फंटकत्ते । यहाँ तक
कि घर की श्रामदनी भौर खर्च का हिसाव-विताबव भी लल्ला की महतारी ने जिम्मे
है । पपने राम उस ओर से बेफिकर हैं ।”*
भाथिक तथा पारिवारिक चिन्ताभनो कौसुम मूकितिप्रौर सम्पन्नता ने
'कौशिक' जी के स्वभाव को सरलता, भावुकता और विनोदप्रियता प्रदान की । इनका
भारी-मरकम शरीर मी इनक विनोदप्रिय प्रहरति के भ्रनुकूल धा 1 शाम्मूनाय सक्सेना
लिखते हैं--“कोशिक' जी की तोद उनके बदन का विश्लेपण है, जिसका विकास
साहित्य मे विजयानन्द चौवे के रूप में हुआ है । सिर वे बाल खिंचडी हो गये हैं,
लेक्नि वही राग-रग का जीवन है! उनके जीवन के साथ ही उनका कलाकार भी
रस प्रधान है ।”* इनका भधिकाश साहित्य इसी विनोदशील प्रवृत्ति से प्रभावित है 1
গীত হাল, खिलावन काका? ,रेलयात्रा', 'एप्रिल फूल', 'लाला की होली” भ्रौर
“मुन्धी जी का ब्याह इत्यादि वहानियों में इस प्रवृत्ति वी स्पष्ट भझाँगी मिलती है।
'बौशिक! जी के स्वभाव का एक विशेष गुण था स्वाभिमानपूर्णो स्वच्छुन्द
विचारधारा । प्रपने स्वाभिमान पर तनिक-सोी ठेस लगते ही यह त्तितमिला उछ्ते
ये कलाकारौचितत सम्मान के प्रति पट् जीवन मे सदेव जागरूक रहे तथा चादु-
घारिता को घृशास्पद समझता ) जीवन मे कमी किसी ऐसे व्यत्रित को प्रश्मसा इन्होने
नहीं की जिसके लिए इनवी आआरात््मा ने गवाही नहीं दी। स्पष्टवारो होने दे कारण
यह অহী बात वहते थे झोर इस बात वी चिन्ता नही बरते थे कि कोई उससे प्रसन्न
ছারা ই भथवा प्रमप्रन् ॥ किसी को भझनुचित बात को यह सहन नहीं करते थे |
निम्नलिखित पक्तियाँ इनकी इसी विशेषता को भोर सतत करती हैं --
(व) “प्रपने राम विसी से दवकर रहने वाले जोव नहीं ।””३
{ल} “प्पने राम नाव पर मक््खी नहीं डेठते ইউ ৮২
“दुबे जी को डायरो'--विजवाननद दुबे, पृष्ठ ३२ |
उद्दूव हिन्दी कदानों और कहानाकार'--प्रो० बासुदेव
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थे नौ का चमा --पिजपानन द, ष्ट, ३२ । ज १० १३१-१३२॥
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