प्रश्नोपनिषद् | Prashnopanishad

Proshopanishad by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ प्रश्नोपनिषद्‌ [ प्रश्न १ ২৩২১ 0 बह 1 1 2:30 नया >०)७७ बाई: ৬ | ১ अथ संवत्सरादूध्वे कबन्धी. तदनन्तर एक वर्ष पीछे । का লল্ল [ कात्यायन उपेत्योपगम्य पप्च्छ ` कात्यायन केजन्धीने [ युरुजीके ] , समीप जाकर पूछा--“भगवन्‌ ! पृष्टवान्‌ । हे भगवन्कुतः कसाड़ू यह तआह्मणादि सम्पूर्ण प्रजा किससे वा इमा नाङ्मणाययाः प्रजाः प्रजा- , उत्पन्न होती है ” अर्थात्‌ अपर- यन्‍त उत्पयन्ते । अपरविद्या- ' ब्रह्मविषयक ज्ञान एवं कर्मके प्रणों: सम्रचितयोर्य॑त्कार्य ' समुच्यका जो कार्य है और उसकी केमंणोः सयुचितयोयत्कछायं या রি ।আীশনিই লহ ললভালী স্থাহ্িখি। गतिसतद्क्तव्यमिति तदर्थोभ्यं उसके च्थि यष प्रश्न किया गया সঃ | ३॥ है॥३॥ ०69 रथे ओर प्राणा उत्यात्ति तस्मे स होवाच प्रजाकामो वै प्रजापतिः स तपोऽ तप्यत स तपस्तप्त्वा स मिथुनमुत्पादयते । रयिं च प्राणं चेत्येतौ मे बहुधा प्रजाः करिष्यत इति ॥ ४ ॥ उससे उश्च पिप्पलाद सुनिने कदा--'परसिद्ध है कि प्रजा उत्पन्न कःरनेकी इच्छावाटे प्रजापतिने तप किया । उसने तप करके रयि ओर्‌ प्राण यह जोडा उत्पन्न करिया [ ओर सोचा---) ये दानं दी मेरी अनेक प्रकारका प्रजा उत्पन्न करगे ॥ ४ ॥ तसा एवं प्रष्टवते म होवाच | अपनेसे इस प्रकार प्रश्न करने- वाठे कत्न्धीसे उसकी राङ्का निवृत्त तदपाकरणायाह । प्रजाकामः करनेके लिये पिप्पलाद मुनिने कहा--प्रजाकाम अर्थात्‌ अपनी प्रजा रचनेकी इच्छावाले प्रजापतिने पतिः सर्वात्मा सज्ञगतखक्ष्यामि | भ सर्वात्मा होकर जगत्की रचना प्रजा आत्मनः सिस॒क्षुवें प्रजा-




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