बुद्-बुद | Budbud

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Budbud  by हारमाऊ उपाध्याय - Harmau Upadhaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खुददुद ] सार सफ़र छा पूज़क है। वह लक्ष्य की उच्चता, भयत्न फी तल्लीवता, साधन की शुद्धता सै ही सन्तुट्ट महीं होता, उसकी कदर नं करता, घ लो पूछदा ही रदता জনিত नत्तीजा क्‍या निकला ৮৫ > ৯৫ इसलिए ऐ अनजान युवक, सफल होने तक धीरज मत छोड़ । सदि तू जगव्‌ छा सहयोग चाहता है, तो लगत्‌ डी कड़ी कप्ौटी से -मह धमरा । > न > দুধ জরা £-- मै जगच्‌ के पाष नौ जागा । जगत्‌ फो सरुरत हो तो मेरे पास भागे ।! यह भमिमान है । दूसरा कहता ই টিং হাত एक भच्छी घ्रीज है। जगत को मैं निमन्त्र देता हूँ । यदि वह वास्तव में अच्छी झोगीतो जगत क्यों न कृदर करेगा यह वासव मे कोहं साधक है। ৮৫ ৮৫ ৮৫ एक आदमी है, जिसे काम को सफर यनाने की यदी धुन है। নব হন मी नहीं झहस्ना चाहता कि जरा देख तो छे कि साधन सामग्री सम ठीक ठीक भी है या नहीं | पुर दूसरा आदमी है, जो साधन-सामप्री के ग्रयोचित होने फी क्षधिद्र चिन्ता रखता है । व লী শত জীব হীগা? > > > किकी काम मे प्राण पण से शट जाना एक ঘাল ই, জীবিত এ]




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