लोकरंग | Lokrang

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्थिर स्तर का. भी भान नादयशास्त्र से हमें. होता है । स्पष्ट है कि नाटकों के इतिहास में यह कम से कम पांचवीं अवस्था हो सकती. है । -यथा-- . ~ ` ` । प्रथम अवस्था आदिम अवस्था है। इस अवस्था के अंतिम छोर पर मनुष्य ने:कहानी कहनो सीख लिया था, गीत भी: गाने लगा था तथा नृत्य भी करने लगा था 12 पर यह सब कुछ ऐसे था जैसे कोकिल गाती है और मयूर नाचता है श्र्थाव्‌ प्रकृति के झवयव-की तरह उससे तादात्म्यपुवंक । उसकी कहानी भी मनुष्य से अधिक प्रकृति के व्यापारों की थी। बह और प्रकृति के विविध तत्त्व एक कुटुम्ब. कै सदस्य की भांति व्यापार~विद्ध ये । श्रतः प्रकृति के तत्त्वो से नाम- दान करते हुए उनकी. क्रियात्रों में अपने तद्बप अभेद से गति, घटना और उनसे कहानी निर्मित होती देखी। मानव सहज ही अनुकररणत्रिय .है। ये सभी ` शअ्रभिव्यक्तियां अत्यन्त सहज थीं। उत्तनी ही प्रबलता से अंतःप्रेरित थीं। यहाँ उसकी शारीरिक क़ियाश्रों और क्रीड़ाओं को श्रभिनय नहीं माना जा सकता । इन श्रनुक्ृति क्रियाप्नरों को भी अभिनय नहीं मात्रा जा सकता। इन क्रियाश्रों . को . भी वह भोग रहा था, उन्हीं की तरह जिनका वह अनुकरण कर रहा था । यहां' गीत था, उसके साथ ही नृत्य भी था और नादय, भी था। गीत या नृत्य की प्रघानतों थी पर नादय भी संयुक्त था। । 12. श्री जी. एस. धरये ने लिखा है कि-- 50111 1९116 9 88108 ০010 8092] (9 11855 0591) 210 9811 10990. 01777 0 62119 10101 ০0169121 6৬০91001077 10180 2০০৭. 00604820090? 5810)5 [तात्‌ ` तात्‌ 17 ০0700906100 ৮7107 „` भाण [टि ष्टमा, ৬০80: 1006 ए0०भं1एलए 881० ৮ ০1000 1) `. लील ` 0100 8४ ४९०६३ 01 116 पालः 29195011000 886 7?81,87070111फ्राट 526 ५ 3-8७, 01 8650फा 25,000 57 20,000 8. €. 7718 क्षा1ए -.818001819020093,-9910):5010 02852061800 200 60- ০0150155210. 6৮০7. 1010060:0106 1975 1000159:10 10179 -0090900165 9£10810909 10 88 200. .: 3) , (~, 8102141 221४8 आत्‌ 115 (0900168, $ 6.9. 1. ` पा$६.(1{958) 2.2. . सात




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