राजनीति के सिध्दान्त | Rajneeti Ke Siddhanta

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Rajneeti Ke Siddhanta by कृष्णकान्त मिश्र - Krishnkant Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजनीति क्‍या है 9 हितों की समरूपता लाने मे बडी बाधा डालते हे । सरकार का पहला कर्तव्य इन स्वभावो की रक्षा करना है। संपत्ति प्राप्त करने की भिन्‍न और असमान योग्यता की रक्षा करने से तुरंत संपत्ति की विस्मों और मात्रा के भेद पैदा हो जाते हैं और भिन्‍न भिन्‍न मात्रा और किस्म की संपत्ति के मालिको के विचारों और भावनाओं के असर से समाज मिलन भिन्‍न हितों और दलों में वंट जाता है ।* जेम्स मैंडीसन पूंजीवादी अमरीका के सविधान के संस्थापकों मे माने जाते हैं परंतु उनका वर्गंविश्लेषण मास के वर्गेविश्लेषण से मिलता-जुलता है। फर्क यह है कि जहां मैंडीसन संपत्ति के विषय विभाजन और उत्पादन के पूजीवादी स्वामित्व के समर्थक हैं, मार्क्स इस व्यवस्था के गंभीर वैज्ञानिक आलोचक और क्रात्तिकारी समाजवादी है । सोटीनुमां समाज राजनीति मे व्गंशासन को मदद देता है। ऊपरी सीढी के वर्ग नीचे की सीढ़ी के वर्गों से उन्हे दास, कृपफ्दास या औद्योगिक मजदूर बनाकर मतमाफिक काम ले सकते हैं और उनसे अपनी आज्ञाओं का पालन करा सकते है। यूरोप की सामंत- शाही और भारत की वर्णव्यवस्था सीढीनुमा समाज के शोपण और उत्पीडन की सबसे महत्वपूर्ण मिसालें हैं। इस समाज में आधिक सत्ता, राजनीतिक सत्ता और विचारधारा की सत्ता घुलमिलकर एकाकार हौ जाती है 1 लोकतंत्र शौर सामाजिक इकरारनामा : सबसे पहले यूनान के नगरराज्यों के मालिक वरग ने सत्ता के विस्तार के बारे में कुछ नए प्रयोग किए। कुछ नमरों में कुछ समय के लिए शासन में हिस्सा लेने का हुक मालिक वर्ग के सभी सदस्यों को दे दिया गया । हमे ध्यान में रखना चाहिए कि इन नगरराज्यो में स्त्रियों, गुलामों और दूसरे नगरो के प्रवासियों को राजनीतिक अधिकार प्राप्त नही थे। अरस्तू और प्लेटो के विचार लोकतंत्रविरोधी थे। परंतु अन्य यूनानी विचारकों ने लोकतंत्र का समर्थन भी किया। रोमन गणतंत्र मे भी लोकतंत्र की संतोपजनक व्याख्या न हो सकी | रोम की परिपद में गुटो और वर्गो के आपसी वाद-विवाद से प्रजातत्र के सिद्धांत का विकास न हो सका। रोम के संपन वर्गे की एकमात्र इच्छा विपन्न वग भौर दांसों को दवाकर अपने ऐश्वर्य और विशेषाधिकारो की रक्षा करना ही था। आधुनिक थुग मे सनहवी सदी के लेविलर आदोलन, क्रामवेल ओर फिर लाक से लोकतंत्र के सिद्धात का प्रतिपादन किया। लाक ने सामाजिक इकरारनामे के सिद्धात को प्रजातेत्र की दिशा मे मोड़ दिया। उसके बाद फ्रास और अमरीका की बुर्जुआ क्रांतियों ने राजनीति में भ्रजातंत्र ओर सामाजिक इकरारनामे के सिद्धातों को कार्यान्वित किया । संक्षेप में सामाजिक इकरारनामे का सिद्धांत कहता है : भोग अपनी मेहनत से संपत्ति पैदा करते हैं और यह उनके पसीने को कमाई उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाती है। ये लोग बहुमत से मपने प्रतिनिधियों को चुन लेते हैं और आशा करते हैं कि वे उनकी इच्छा के अनुसार शासन करेंगे। अगर वे इकरारनामे का उल्लंघन करते हुए उनकी संपत्ति या स्वतत्रताकै अधिकारों का उल्लंघन करेंगे, तो वे शासको को विद्रोह के जरिए हटाकर नए शासक चुन लेंगे, जो सविधान और इकरारनामे का पालन करभे । रसो को मामान्य इच्छा' का उद्देश्य भी स्वतंत्रता और स्पत्ति के अधिकारों को संरक्षण देना है। इस «




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