धर्माप्रश्नोत्तर | Dharmprashnottar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घर्मप्रश्नेरकर । [९४]
सिद्ध है क्योंकि उसे केबल झूंठवोलनेसे ही सातवें नरक
जाना पड़ा था।
९२ । उत्तम सोच पाठने करते तलोक यथा क्या दतरा
संतोपरूप राज्यकी प्राप्ति होती है जिससे फिर अनेक सुख
उत्तन्न होते हैं। आशा ओर छोभरूप शन्रुओंका सर्वथा ना-
श हो जाता है। शौच पालन करनेवाला संप्तारमें अतिशय
पूज्य और मान्य गिनाजाता है।
९१ । इ शौच धरते परलोक क्या फठ मिलता है।-जिस
को केवल प्रेसेक्यनाथ स्वेद ही अनुभव कर सकते ই ই
मोक्षरूप सुखकी प्रपि हती दै।
১০24
मद्दाशयका देहांत होंगया णौर महाराजके सगवास दो जानेपर राजपुत्र वतु भी
सिद्ावनाह्ड हमा । एक दिन नारद पमे यात्ौत ते হু পতন”
इस धाययायपर विवाद हो पढ़ा । नारद ছলো থা কি दका अर्थ “তন জী
हवन करना ” है और पर्वत टता था कि बकरोते हवन करना पच्च भव ই)
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जोने इसका कया भयं यत्छाया ६ पयो राजा चनु मी शनका चष्टष्यायौ पा ।
दूसरे दिन ये दोनों राजा बसुके पास गये शीरं उ বাসনা জু निथयं रता
नादा | राजा ञ्च जानता था न युष्मे दद्म अये पुराने जसे वन क्न
बताया है और यही उत्तर कलकी सभामें देनेफेलिय उसने विचार किया या।
परंतु पर्वतकी मांताफ़ों बढ़ी चिंता हुई कि कट्टी राजा অয়ন ঘথাধ হাল হট হা বা
राजसभामें पर्यतकी वी अग्रतिष्ठा दोगी । यों सोच समपबदर वह হলুষ্ট থান
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