भारत की भाषाएँ और भाषा संबंधी समस्याएँ | Bharat Ki Bhasha Aur Bhasha Sambandhi Samasyaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)¶ १1] भारत की भाषा-समस्याका स्वरूप
क्या है ?
भारतवपे क्षेत्रफल में रूस को छोड़कर समग्र यूरोप-खण्ड
ऊ समान दै । मूलतः भिन्न भिन्न प्रकार की नाना जातियों और
नाना भाषाओं के लोग इस देश में आकर सम्मिलित हुए हें;
ओर भारतवप की जनसंख्या समग्र संसार की जनसंख्या का
पॉचवाँ भाग है। देश का विस्तार, अधिवासियों की संख्या
ओर उनमें मोलिक जातिगत ओर भाषागत पार्थक्य इन सबको
ष्टि मे रखने से यह सवथा स्वाभाविक है कि भारतवर्ष में
अनेक भाषाएँ रहेंगी । इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं |
प्राचीनकाल और मध्ययुग में भाषा की यह विभिन्नता
ओर बहुलता देश में समस्या के रूप में नहीं दिखाई पड़ी थी।
जनता अपनी प्रान्तीय अथोत् स्यानीय वोलचाल कौ भाषा
को लेकर अपना दैनिक काम चलाती थी; और अभिज्ञात या
उच्च तथा शिक्षित वर्ग के लोग, जिनके हाथों में देश-संचालन
का भार था, हिन्दूराज्य सें संस्कृत भाषा की सहायता से, और
मुसलमानी राज्य में फारसी की सहायता से भारत के अन्दर
अन्तःआदेशिक और भारत के बाहर की दुनिया से अन्तर्सप्रीय
कास-काज चलाते थे। इसके अलावा, देश भेद से मापा भेद
छअथोत् सापा-मापा में पार्थस्य तव मी था किन्तु आजकल .
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