राजस्थानी - वीरगीत - संग्रह | Rajasthani - Veerageet - Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ४ 1
स्वधर्म का पालन करते हुए मृत्यु का आलिंगन करने वाले वीरो की मृत्यु पर
शोक झ्थवा रुदन करने की राजस्थान मे परम्परा नही रही है | ऐसी वीर मृत्यु मागलिक
कही गई है। राठौड वीर पृथ्वीराज जैतावत के रण-निधन पर उसकी पत्नि के विलाप करने
पर कवि ने उसके पति के कुल-धर्म का स्पष्ट स्मरण करवाते हुए कहा है---
राणी म रोइ पीथौ रण रीघल, रिण गा छाडि जिके भड रोइ।
घण जूभी रिणमाल तर्ण घरि, हुवँ मरण লিল লযাল্ত होइ ।।
पीथल तणौ म करि पछि ভি, दिग गा तजि करि ताह दुख ।
গাহি ব श्रेह श्रता घरि श्रागं, सार मरण घण घणो सुख ॥
वीरगीतो मे उपयेकित सास्क्ृति विशिष्टताशो के शअ्रतिरिक्त योद्धा के आतक
भय, प्रताप श्रौर प्रभाव श्रनेक गीतो मे सबल भाषा में अभिव्यक्त हुझ्ा है। श्रामेर
के कछवाहा नरेश मिर्जा राजा जयसिह से बादशाह श्रौरगजेब वडा भयभीत रहता था।
वह उसे न दिल्ली से दूर रखने मे श्रपती खेर समभता था और न पास रखने पर चेन
से रह सकता था । गीतकार ने श्रौरगजेब की द्विधागस्त मन स्थिति का निम्नलिखित रूप मे
तथ्यपरक वर्णन किया है---
अत अछगो ठाढ़ विलागे॑ श्रातम, श्रत नैडे प्राजठे श्रथाह 1
श्रौरगसाह श्रडर श्रावेरी, सीत तण पावक जैसाह ॥
दूर তই ভুক্ত নামী, रूका मुख होमवा रिम।
रत हेमन्त वसन्त गत राजा, जवन जाठ्वं जद्ण जिम ॥
मिर्जा राजा जयसिंह जैसा वीर था उसी के भ्नुरूप प्रवीण राजनीतिज्ञ शासक भमी धा।
दिल्ली के वादशाहो को वह श्रपनी कुशल नीति एव विचक्षण बुद्धि से चौसर के खेल
की गुद्धिकाओ की भाँति क्रीडा करवाता था---
करग खाग पासो भरत खड चौपड करै,
दुगम खेला मिले मड दुबाहां ।
देयतौ धाड घण घाउ जैँसिंघदे,
सारि जिम रमाड़े पात्तसाहा ॥1
परठीजै जोड याणा हिय पारके,
डाण आराण कीजं इसा डाउ |
पाघरे थापि उथापिज॑ असपति,
रमे रामति तिका कूरमा राड ॥
ऐवहा खेल खेले भुजा आपरा,
मीर रद हुआ मेल्हे मछर माण |
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