सूत की माला | Sut Ki Mala
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चुत की माला
( २)
नाम के अलः आजाद हम हं
देश की एकता खो गई हें,
क्या इसी पर खुशी हम मनाएँ,
एक की क़ौम दो हों गई हें,
* लाखहा खो चुके जान अपनी,
लाखहा : वन चुके हें भिखारी,
हर जगह आज हेवान जागा,
आदमीयत कहीं सो गई हैं
जोकि वोया जहर था घृणा का,
आज चारों तरफ़ फट रहा हें,
देद मे अखि फरो कहीं भी,
सामनं ददं-ड्वा नजारा ।
उठ गए আজ वाप् हमारे,
भकं गया आज भंडा हमारा!
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