जायसी का सांस्कृतिक अध्ययन | Jaysi Ka Sanskritik Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ ब्रजनारायण पांडेय - Dr. Barjnarayan Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८ ] [ जायसी का सांस्कृतिक अध्ययन
तत्कालीन राजनैतिक वातावरण का विवेचन किया जाय जिपमें मुगलसाज्राज्य को
स्थापना सभव हो सकी ।
भारतवर्ष अनेक छोटे राज्यों में,विमाजित
दिल्ली सल्तवत के विघटव होने पर सोलहवी शी के आरम्भ में भारतेवर्ष
अनेक छोटे-छोटे राज्यों मे विभक्त हो गया 1 दिल्ली के अधोनस्थ अनेक प्रान्तपतियों
नै केन्द्र से अपता सम्बन्ध विच्छेद करके स्वतन्व्सत्ता स्थापित कर लौजो परस्पर
मरुद्धरत रहते थे 1 फलत क्ति क्षीण हो गई यो । राज्यों एवं गढ़ों मे गुजरात,
जौनपुर, चुनार, चित्तौड, सूरजगढ, कालिजर, गौड, रोहतास, कन्नौज, चौसा, विद्वार
बनारस, सौकरी, आगरा, चदेस, कालपी, दिल्ली, लाहोर, मालवा, माण्डू, उज्जैन,
सारगपुर, उत्तर भारत इत्यादि प्रमुख थे ।
घुगलों वथा अफगानों का संघषमय युग
बाबर तथा उसके आत्मज हुमामूं' एव अफगानों में शेरशाह इत्यादि का
सघर्ष उल्लेखनीय है । बाबर के आक्रमण १५१६-२० ई० में हुए तथा अत्यन्त सधर्षो
प्रान्त वह २७ अप्रेल सनु॒ १५२६ को यहाँ का सम्राट बन बैठा । हुमायूँ” तथा
छेरणाह की लड़ाई विशेष पहत्वपूर्ण है। साम्राज्य अस्तब्यस्त था । नोव सुहृढ नहीं
थी । रशब्रकू विलियम्स के अनुसार बाबर ने अपने युग के लिए ऐसा साम्राज्य छोडा
था जो केवल युद्ध को परिस्थितियों मे ही! सगठित रबखा जा सकता या ।१
प्रुसलमानो में ६उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम ही नहीं बनाया ग्रया
था । अत, इसके लिए भी तलवारो की परीक्षा होतो थी। “एजिकाइन” के अनुषार
*ठलबार अधिकारियों को महान निर्णायक थी ।””* माभ के सामने मी उसके भाई
कामसन हिन्दाल अस्करी भी गद्दी के लिए इच्छुक थे । शेरथाह को भो सोतेले
भाइयों का शिकार होना पडा था।
शकि उत्तराधिकार के लिए कोई नियम नहीं था । मद जो ही गद्दी का
मालिक होता था वही एकतम्त्रात्मक अधिकारी बनता था। हमायूं तो किसो-किसी
की परामर्थ भी लेता था परन्तु शेरशाह परामश्शंदाताओं को भी अपने कापों के लिए
अनावश्यक मानता था । फिर मी निरक्षुशता की वू उसमें नही थी। एवं स्वयं सभी
অনিক নানী को देखता था ॥*
: (१) मध्यकालीन भारत १००० से १०९७ वकः, ० १८७५ पीर दी गुप्ता,
प्निन्सिपक्त एन आर० ° सी° कालेज, सुना तथा पएम० पएत° शमौ ।
(२) मध्यकालीन भारत, प° १६६। (३) वदी, प्र° १६५।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...