मेरे दोस्त का बेटा | Mere Dost Kaa Beta

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Mere Dost Kaa Beta by कृष्णचन्द्र शर्मा - Krishnchandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महालच्मी स्टेशन के इस पार महालक्ष्मी जी का मंदिर है, उसे लोग रेस कोसं भी कहते हैं । इस मंदिर में पूजा करने वाले हारते अधिक हैं जीतते कम हैं । महालक्ष्मी स्टेशन के इस पार एक बहुत बड़ी गन्दो नाली है, जो मानव शरीरों की मल्न को ढके हुए पानी में घोलती हुदै शहर से बाहर चली जाती है। मंदिर में मनुष्य के मन का मल धुलता है और गन्दे नाले में मनुष्य के शरीर की मेल और इन दोनों के बीच में महालच्मी का पुल है। महालच्मी का पुल के ऊपर बाई ओर लोहे के जंगले पर छुः साड़ियाँ लहरा रही हैं, पुल के इस और सदा इस स्थान पर कुछ एक साड़ियाँ लहराती रहती हैं। यह साड़ियाँ कोई बहुत मूल्यवान नहीं है, इन के पहिनने वाले भी कोई बहुत अधिक मूल्यवान्‌ नहीं होंगे । यह लोग प्रतिदिन इन साड़ियों को धोकर सूखने के लिए डाल देते हैं और रेलवे लाइन के आर-पार जाते हुए लोग महालच्मी स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा करते हुए गाड़ी की खिड़की ओर दरवाजों से बाहर देखने वाले लोग प्रायः इन साड़ियों को हवा में गूलता हुआ देखते हैं। वह इन के विभिन्‍न रंगों को देखते हैं भूरा, गहरा भूरा, मठमेला, नीला, क्रिमजी भूरा, गंदा लाल, किनारा गहरा नीला ओर लाल । वह लोग प्रायः इन्हीं रंगों को वातावरण में फैले हुए ५




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